प्रयागराज

Mahakumbh 2025: शाही स्नान अब अमृत स्नान, पेशवाई अब नगर प्रवेश, महाकुंभ के पहले हुआ नामकरण, CM Yogi ने की घोषणा

Mahakumbh 2025: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाकुंभ के शाही स्नान का नाम बदलकर अमृत स्नान और पेशवाई को नगर प्रवेश करने की घोषणा की है। मंगलवार को प्रयागराज में बायो सीएनजी प्लांट और फाफामऊ स्टील ब्रिज का उद्घाटन किया।

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Mahakumbh 2025: इसके साथ ही सीएम योगी ने महाकुंभ 2025 की तैयारियों का जायजा लिया और घाटों का दौरा किया साथ ही गंगाजल का आचमन भी किया। उन्होंने महाकुंभ के शाही स्नान का नाम बदलकर "अमृत स्नान" करने की घोषणा की।

महाकुंभ तैयारियों का निरीक्षण

सीएम योगी सबसे पहले नैनी स्थित बायो सीएनजी प्लांट पहुंचे, जहां उन्होंने इस परियोजना का उद्घाटन किया। इसके बाद उन्होंने फाफामऊ में बने स्टील ब्रिज का शुभारंभ किया। महाकुंभ की तैयारियों का निरीक्षण करते हुए उन्होंने विभिन्न घाटों का दौरा किया और उनकी स्थिति का आकलन किया। बड़े हनुमान मंदिर में मत्था टेकने के बाद, उन्होंने मेला प्राधिकरण के सभागार में अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक की।

शाही स्नान अब होगा अमृत स्नान

मुख्यमंत्री ने बैठक के दौरान घोषणा की कि महाकुंभ में "शाही स्नान" को अब "अमृत स्नान" के नाम से जाना जाएगा। यह निर्णय संतों और अखाड़ों द्वारा लंबे समय से उठाई जा रही मांग के तहत लिया गया। शाही स्नान की परंपरा का शास्त्रों में उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन यह सदियों पुरानी परंपरा है, जिसमें महाकुंभ के दौरान साधु-संत शुभ मुहूर्त में सबसे पहले स्नान करते हैं। इसके बाद ही आम श्रद्धालु स्नान करते हैं। परंपरा की शुरुआत 14वीं से 16वीं सदी के बीच मानी जाती है। अब इस ऐतिहासिक परंपरा को नया नाम दिया गया है।

पेशवाई का नाम बदलकर नगर प्रवेश

महाकुंभ में "पेशवाई" का विशेष महत्व है। यह शब्द फारसी भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है सम्माननीय व्यक्ति का स्वागत। महाकुंभ में पेशवाई साधु-संतों के जुलूस को दर्शाता है, जिसमें संत रथ, हाथी और घोड़ों पर सवार होकर मेला नगरी में प्रवेश करते हैं। इस परंपरा का नाम बदलकर अब "नगर प्रवेश" कर दिया गया है। अखाड़ों और संतों ने लंबे समय से पेशवाई के नामकरण में बदलाव की मांग की थी जिसे मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया।

अमृत स्नान के लिए दो नामों पर किया गया विचार

शाही स्नान को "अमृत स्नान" का नाम देने का उद्देश्य इसे एक नए आयाम पर ले जाना है। इसके लिए दो नामों पर विचार किया गया था राजसी स्नान और अमृत स्नान। संतों और अखाड़ों की सहमति के बाद "अमृत स्नान" को अंतिम रूप दिया गया। पेशवाई की जगह "नगर प्रवेश" नाम का चयन कर इस परंपरा को नया स्वरूप दिया गया है। संतों और अखाड़ों ने इसे सकारात्मक रूप में लिया है।

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