Padma Shri Dr. Surendra Dubey passed away: डॉ. सुरेन्द्र दुबे का उपचार एसीआई रायपुर में लंबे समय से चल रहा था। हृदय की गति रूकने के कारण आज दोपहर उन्होंने अंतिम सांस ली।
Padma Shri Dr. Surendra Dubey passed away: प्रसिद्ध कवि, व्यंग्यकार और आयुर्वेदाचार्य डॉ. सुरेंद्र दुबे का निधन हो गया। मिली जानकारी के अनुसार डॉ. सुरेन्द्र दुबे का उपचार एसीआई रायपुर में लंबे समय से चल रहा था। हृदय की गति रूकने के कारण आज दोपहर उन्होंने अंतिम सांस ली। इसकी जानकारी उनके परिवार के करीबियों ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर देते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। इधर निधन की खबर मिलते ही शोक की लहर दौड़ गई।
बीजेपी नेता उज्जवल दीपक ने श्रद्धांजलि दी। पेशे से आयुर्वेदिक चिकित्सक, दुबे का जन्म 8 अगस्त 1953 को बेमेतरा, दुर्ग, भारतीय राज्य छत्तीसगढ़ में हुआ था। उन्होंने पांच पुस्तकें लिखी हैं, भारत सरकार ने उन्हें साल 2010 में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया था। वे 2008 में काका हाथरसी से हास्य रत्न पुरस्कार के प्राप्तकर्ता भी रहे है।
हास्य और व्यंग्य को अक्सर हल्के में लिया जाता है, लेकिन डॉ. दुबे जैसे कवियों ने इसे गंभीर साहित्यिक विधा बना दिया। उनकी कविताएं केवल हँसी नहीं देती थीं, वे भीतर झाँकने का मौका भी देती थीं। मंच पर उनका आत्मविश्वास, प्रस्तुति की शैली और चुनी हुई शब्दावली श्रोताओं को बाँध लेती थी।वे कई राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों का हिस्सा रहे, दूरदर्शन व अन्य चैनलों पर भी उन्होंने अपनी उपस्थिति से कविताओं को घर-घर पहुँचाया। हास्य में गंभीर बात कहने की जो कला उन्होंने विकसित की, वह उन्हें समकालीन कवियों से अलग करती है।
डॉ. दुबे को 2010 में भारत सरकार द्वारा देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री प्रदान किया गया। इससे पहले, 2008 में उन्हें काका हाथरसी हास्य रत्न पुरस्कार से भी नवाजा गया था। उन्होंने पाँच पुस्तकें लिखीं, जो हास्य-व्यंग्य साहित्य में मील का पत्थर मानी जाती हैं।
कविता केवल भावनाओं की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि समय का दस्तावेज़ भी होती है। डॉ. सुरेंद्र दुबे ने अपने व्यंग्य और हास्य से सामाजिक विसंगतियों, राजनीतिक हलचलों और मानवीय संवेदनाओं को छुआ। उन्होंने हमें सिखाया कि हँसी सिर्फ मनोरंजन नहीं, एक क्रांति हो सकती है।
उनका निधन केवल एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं, बल्कि कविता मंचों की गूंज को एक ठहराव देने जैसा है। वह आवाज़, जो मंच पर आते ही तालियों से स्वागत पाती थी, अब सदा के लिए मौन हो गई है।