Nag Panchmi 2025: राजधानी करीब तीन अखाड़े हैं। इन तीनों अखाड़ों में लगभग 400 से अधिक पहलवान कुश्ती का प्रशिक्षण लेने और वर्जिश करने पहुंचते हैं। इनमें बड़ी संख्या में महिला पहलवान भी शामिल हैं।
Nag Panchmi 2025: आधुनिक दौर में जहां अपने शरीर को चुस्त दुरुस्त बनाने के लिए शहर के लोग जिम में जाकर कई घंटों तक पसीना बहा रहे हैं। वहीं अखाड़ों में वर्जिश करने का दौर आज भी राजधानी के कई अखाड़ों में जारी है। अब इन अखाड़ों में लड़कियों की संख्या भी बढ़ रही है। इन अखाड़ों में महिला पहलवान भी कुश्ती के दांवपेच सीखकर अपना दमखम दिखा रही हैं।
राजधानी करीब तीन अखाड़े हैं। इन तीनों अखाड़ों में लगभग 400 से अधिक पहलवान कुश्ती का प्रशिक्षण लेने और वर्जिश करने पहुंचते हैं। इनमें बड़ी संख्या में महिला पहलवान भी शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि नागपंचमी के दिन पहलवानों के बीच दंगल की प्रथा कई वर्षों से शहर में चली आ रही है। इन अखाड़ों में नागपंचमी पर विशेष पूजा पाठ होती है।
140 साल पुराने जैतू साव मठ, महावीर व्यास अखाड़ा के पहलवान गजेश यदू ने बताया कि जिम में जाकर बॉडी बनाने का क्रेज युवाओं में बढ़ता जा रहा है। जिम में बनायी हुई बाड़ी जिम छोड़ने के बाद लूज हो जाती है। जबकि अखाड़ों में वर्जिश करने से शरीर कभी ढीला नहीं पड़ता। यहां पारंपरिक रूप से दंड मारना, गदा चलाना, रिंग में झूलने से शरीर में मजबूती आती है। अखाड़ों में आज भी चना, मूंग, मसूर दाल, उड़द दाल, केला आदि का सेवन किया जाता है। उन्होंने बताया कि अखाड़ों की मिट्टी औषधी का काम करती है। इसमें सरसों का तेल, हल्दी, शुद्ध घी और बहुत सी औषधियां मिली होती है, जो दवाई का काम करती है।
पहलवान गजेश यदू ने बताया कि नागपंचमी के दिन अखाड़ों में विशेष पूजी की जाती है। इसमें एक हफ्ते पहले अखाड़ा की मिट्टी से मंगलवार व शनिवार को पहाड़ बनाया जाता है। फिर अखाड़ा के डंबल्स, गदा समेत अन्य सामानों से शृंगार किया जाता है। इसमें शेषनाग की मूर्ति रख पूजा होती है, लेकिन इस बार विशेष भगवान शिव की मूर्ति बनाई जा रही है। नागपंचमी के बाद आने वाले शनिवार व मंगलवार को उस पहाड़नुमा मिट्टी को बराबर करते हैं। फिर कुश्ती का नेग किया जाता है। आज भी इस अखाड़ा में गुरुशिष्य परंपरा है, अंदर घुसते ही उस्ताद समेत पहलवान को जय श्रीराम का उद्घोष करते हैं। वर्तमान में जैतू साव मठ, महावीर व्यास अखाड़ा में 150 से ज्यादा पहलवान है।
पहलवान दिलीप ने बताया कि दंतेश्वरी अखाड़ा को सैकड़ों साल हो चुके हैं। वर्तमान में अशोक यादव इसे संचालित कर रहे है। अभी 150 पुरुष पहलवान और 50 महिला पहलवान हैं। कई पहलवानों ने नेशनल और इंटरनेशनल कुश्ती भी लड़ चुके हैं। यहां नागपंचमी के दिन सभी कुश्ती लड़ते हैं। जो पहलवान कुछ समय पहलवानी छोड़ दिए हैं, वह भी इस दिन आकर अखाड़े की मिट्टी को प्रणाम करते हैं। अखाडे़ की मिट्टी से शिवलिंग बनाते हैं और नागपंचमी के दिन इसकी पूजा करते हैं। फिर उसी मिट्टी को बाद में बराबर कर दिया जाता है।
गुढ़ियारी, स्थित शुक्रवारी बाजार अखाड़ा के पहलवान तोरण लाला साहू ने बताया कि नागपंचमी के दिन अखाड़ा में भगवान हनुमान की पूजा करते हैं। इसके बाद अखाड़े़ के जो पुराने पहलवान हैं, अब नहीं रहे, उनके घरों में जाकर उनकी पूजा करने की परंपरा है। इसके बाद अखाड़ा में रखे सामान की पूजा की जाती है। यह परंपरा 77 सालों से चल रही है। वर्तमान में 100 से ज्यादा पहलवान है। करीब 20 लड़कियां कुश्ती लड़ने नागपंचमी के दिन पहुंचती हैं।