CG News: रायपुर, भिलाई और बिलासपुर जैसे औद्योगिक और शहरी क्षेत्रों में ई-वेस्ट का सबसे अधिक उत्पादन होता है। अकेले रायपुर से ही हर महीने करीब 150 टन ई-वेस्ट उत्पन्न हो रहा है।
CG News: राज्य में इलेक्ट्रॉनिक कचरा (ई-वेस्ट) की समस्या दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है। राज्य में हर साल लगभग 7,500 टन से अधिक ई-वेस्ट उत्पन्न हो रहा है, लेकिन इसके निपटान की पर्याप्त व्यवस्था अब तक नहीं बन पाई है। विशेषज्ञों के मुताबिक, यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो यह कचरा न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि मानव स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव डाल सकता है।
राजधानी रायपुर, भिलाई और बिलासपुर जैसे औद्योगिक और शहरी क्षेत्रों में ई-वेस्ट का सबसे अधिक उत्पादन होता है। अकेले रायपुर से ही हर महीने करीब 150 टन ई-वेस्ट उत्पन्न हो रहा है। इसके बावजूद छत्तीसगढ़ में फिलहाल केवल 3 अधिकृत ई-वेस्ट प्रोसेसिंग यूनिट्स काम कर रही हैं, जो कुल कचरे का मात्र 20 प्रतिशत ही निपटा पाती हैं।
जानकारी के अनुसार, ई-वेस्ट का एक बड़ा हिस्सा अवैध कबाड़ी बाजारों में चला जाता है, जहां असुरक्षित तरीके से इसे तोड़ा-फोड़ा जाता है। इससे न केवल कचरे का उचित पुनर्चक्रण नहीं हो पाता, बल्कि इससे निकलने वाले हानिकारक रसायन ज़मीन और जल स्रोतों को प्रदूषित करते हैं।
ई-वेस्ट यानी इलेक्ट्रॉनिक कचरा में पुराने मोबाइल, कंप्यूटर, टीवी, फ्रिज, वॉशिंग मशीन जैसे बेकार इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आते हैं। इन उपकरणों में मौजूद सीसा (लीड), मरकरी, कैडमियम और अन्य जहरीले तत्व पर्यावरण और मानव शरीर के लिए बेहद खतरनाक होते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि आम जनता को चाहिए कि वे पुराने इलेक्ट्रॉनिक सामान को कबाड़ी में न बेचें, बल्कि अधिकृत कलेक्शन सेंटर में जमा करें। स्कूलों और कॉलेजों में ई-वेस्ट के प्रति जागरुकता अभियान भी चलाया जाना चाहिए।