Ganesh Utsav 2025: मिट्टी में खेलते-खेलते उन्होंने मूर्तिकला को सांसों में बसा लिया। उनके दादा और पिता भी इसी कला से जुड़े थे और आज वे तीसरी पीढ़ी के रूप में इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
Ganesh Utsav 2025: कालीबाड़ी चौक पर मिट्टी की महक और कला की आत्मा बसी है। यही वह जगह है जहां राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित मूर्तिकार राकेश पुजारी अपनी कला से परंपरा और आधुनिकता का सुंदर संगम रचते हैं। बचपन से मिट्टी में खेलते-खेलते उन्होंने मूर्तिकला को सांसों में बसा लिया। उनके दादा और पिता भी इसी कला से जुड़े थे और आज वे तीसरी पीढ़ी के रूप में इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
राकेश को एपीजे अब्दुल कलाम के हाथों राष्ट्रपति पुरस्कार मिलना उनके जीवन का स्वर्णिम क्षण रहा। वे बताते है ये सिर्फ मेरा सम्मान नहीं, बल्कि हर उस कारीगर का है, जो बिना दिखावे के इस कला को जिंदा रखे हुए है। राकेश बताते हैं कि समय के साथ लोगों की पसंद बदली है आज लोग हल्के वजन की, इको-फ्रेंडली और नई डिजाइन वाली मूर्तियां ज्यादा पसंद करते हैं। हमने भी तकनीक के साथ तालमेल बैठाया है, ताकि परंपरा बनी रहे और आधुनिकता भी झलके।
भविष्य की योजनाओं पर राकेश कहते हैं मैं चाहता हूं कि यह कला सिर्फ त्यौहारों तक सीमित न रहे, बल्कि नई पीढ़ी इसे सीखकर इसे पेशेवर पहचान दे। इसके लिए वर्कशॉप्स और ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाने का सपना है। कालीबाड़ी की यह कार्यशाला सिर्फ मूर्तियों का कारखाना नहीं, बल्कि समर्पण और सृजनशीलता की पाठशाला है। यहां मिट्टी से न सिर्फ प्रतिमाएं, बल्कि कला की अमर गाथाएं भी गढ़ी जाती हैं। राकेश ने कहा कि सरकार से मांग है कि कुम्हारों के लिए जमीन अलॉट करे ताकि वे वहां मूर्तियां बनाकर अपनी आजीविका आसानी से चला सकें।
गणेशोत्सव के दौरान उनकी कार्यशाला में रंगों और भावनाओं की बयार बहती है। पारंपरिक चार-भुजा स्वरूप से लेकर बालरूप और आधुनिक थीम वाली मूर्तियां यहां तैयार होती हैं। बढ़ती महंगाई, महंगे कच्चे माल और कॉम्पिटिशन के बावजूद राकेश कला को जुनून से जोड़ते हैं, न कि सिर्फ रोजी-रोटी से। उनका मानना है कि असली कलाकार वही है जो चुनौतियों के बीच अपनी कला को जिंदा रखे।