खेत उर्वरता पर पड़ रहा असर तेंदूखेड़ा. प्रशासन की सख्ती और जागरूकता अभियान के बावजूद किसान नरवाई जलाने से बाज नहीं आ रहे हैं। गेहूं की फसल कटने के बाद खेतों में बचे डंठलों को हटाने की बजाय उन्हें आग के हवाले किया जा रहा है। इससे न सिर्फ खेतों की उपजाऊ शक्ति प्रभावित हो […]
खेत उर्वरता पर पड़ रहा असर
तेंदूखेड़ा. प्रशासन की सख्ती और जागरूकता अभियान के बावजूद किसान नरवाई जलाने से बाज नहीं आ रहे हैं। गेहूं की फसल कटने के बाद खेतों में बचे डंठलों को हटाने की बजाय उन्हें आग के हवाले किया जा रहा है। इससे न सिर्फ खेतों की उपजाऊ शक्ति प्रभावित हो रही है, बल्कि पर्यावरण प्रदूषण भी लगातार बढ़ रहा है। नरवाई जलाने से खेतों के आसपास के पेड़-पौधे झुलस जाते हैं और कई बार यह आग वन क्षेत्र तक पहुंचकर बड़ा नुकसान कर देती है। खासकर तेंदूखेड़ा क्षेत्र के कई गांवों में रोजाना खेतों में आग लगने की घटनाएं देखी जा रही हैं। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि पराली जलाने से भूमि की उर्वरता घटती है और पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है। किसानों का कहना है कि मजदूरों की कमी और हार्वेस्टर से कटाई के कारण खेत में डंठल अधिक बचते हैं, जिसे हटाने में ज्यादा खर्च होता है। ऐसे में वे समय और धन की बचत के लिए नरवाई जलाना आसान समझते हैं। प्रशासन की ओर से कार्रवाई नहीं होने से यह समस्या और बढ़ती जा रही है।