प्रत्येक मनुष्य के अलग-अलग विचार होते हैं। जैसे विचार होते हैं, वैसी प्रवृत्ति बनती है। जैसी प्रवृत्ति होती है, वैसा जीवन बन जाता है। यह विचार मुनि प्रमाण सागर ने जैसीनगर प्रवास के दौरान धर्मसभा में व्यक्त किए।
प्रत्येक मनुष्य के अलग-अलग विचार होते हैं। जैसे विचार होते हैं, वैसी प्रवृत्ति बनती है। जैसी प्रवृत्ति होती है, वैसा जीवन बन जाता है। यह विचार मुनि प्रमाण सागर ने जैसीनगर प्रवास के दौरान धर्मसभा में व्यक्त किए। मुनि ने कहा कि सबसे पहले अपने अंदर उतरकर देखो कि मेरी सोच व विचारधारा कैसी है? उन्होंने कहा कि भावना योग के माध्यम से हम अपने विचार और व्यवहार में परिवर्तन कर जीवन को विशुद्ध बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि जिन लोगों की सोच भौतिक हुआ करती है, उन लोगों का एक ही मकसद हुआ करता है "खाओ पिओ मौज करो" कर्जा लो और घी पिओ" ऐसी विचारधारा उचित नहीं है। मुनि ने कहा कि भौतिक संसाधन हमें सुख सुविधा तो दे सकते हैं, लेकिन वह हमारी भोग आकांक्षा को बढ़ाते ही हैं। इसलिए भौतिक सुख को त्यागकर हमारे तीर्थकरों ने आध्यात्मिक सुख की तलाश में सर्व सुख को त्याग कर जंगलों के कठिन मार्ग को चुना। मुनि ने कहा कि हर बात में नफा नुकसान देखने वाले लोग संवेदनहीन हो जाते हैं। उनका एकमात्र मकसद पैसा ऐंठना होता है। मुनि ने कहा कि जीवन का निर्वाह करो लेकिन अपने जीवन को ही व्यवसायिक बना देना अच्छी बात नहीं। उन्होंने कहा कि जहां व्यवहार की आवश्यकता है वहां आप व्यवहार रखें, लेकिन हर जगह ऐसी सोच कतई उचित नहीं। प्रवक्ता अविनाश जैन ने बताया कि मुनिसंघ का मंगल विहार जैसीनगर से हुआ। रात्रि विश्राम डुंगरिया ग्राम होकर सुबह सोमवार की आहारचर्या सुल्तान गंज में होगी।