तेजी से बढ़ रहा 70 घंटे काम करने का कल्चर धीरे धीरे भारत में भी फैलने लगा है। चीन में शुरु हुए इस कल्चर की डिमांड अब अमेरिका तक होने लगी है और साथ ही भारत में भी इस तरह काम की चर्चाएं शुरु हो गई है।
गूगल के पूर्व सीईओ एरिक श्मिट ने कहा है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की होड़ में चीन से मुकाबला करना है तो अमेरीकी टेक कंपनियों को भी '70 घंटे काम' की तैयारी करनी होगी। उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा, 'वर्क-लाइफ बैलेंस चाहिए तो सरकारी नौकरी कर लो, टेक इंडस्ट्री में कड़ी मेहनत जरूरी है।' श्मिट की टिप्पणी भले ही मजाक में आई हो, लेकिन हकीकत यह है कि कभी आरामदेह सुविधाओं और फ्लेक्सिबल शेड्यूल के लिए मशहूर टेक कंपनियां अब खुलकर लंबे घंटे काम करने की शर्तें लगा रही हैं।
अमेरिकी सिलिकॉन वैली में तो कई जॉब विज्ञापनों में साफ लिखा जा रहा है, सप्ताह में 70 घंटे से ज्यादा काम करना होगा।' चीन का ‘996 कल्चर’ (सुबह 9 से रात 9, हफ्ते में 6 दिन) अब अमेरीकी कंपनियों के लिए 'प्रेरणा' बन रहा है और इसकी गूंज भारत तक सुनाई देने लगी है। फर्क बस इतना है कि भारत अभी भी प्रतिस्पर्धा की इस दौड़ में कर्मचारियों के हित को पहली प्राथमिकता मानता है।
चीन का ‘996 कल्चर’ (सुबह 9 से रात 9 बजे तक, हफ्ते में 6 दिन काम) अमेरीकी कंपनियों के लिए भी प्रेरणा बन रहा है। प्रतिस्पर्धा तेज है और एआइ में अरबों डॉलर का निवेश दांव पर है। यही कारण है कि स्टार्टअप्स से लेकर दिग्गज कंपनियां तक, कर्मचारियों से उम्मीद कर रही हैं कि वे अपनी निजी जिंदगी को पीछे छोड़ लगातार काम करें। इसे ‘हसल कल्चर’ कहा गया है जो मानता है कि 'बुरी तरह थकान' ही काम का मैडल है।
साल 2023 में इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने युवाओं से अपील की थी कि भारत को आगे बढ़ाने के लिए सप्ताह में 70 घंटे काम करें। जनवरी 2025 में एलएंडटी के चेयरमैन एसएन सुब्रमण्यन ने कर्मचारियों से रविवार को भी काम करने और 90 घंटे हफ्तावार काम करने का समर्थन जताया। तब सवाल उठा था, क्या यह देशभक्ति है या आधुनिक गुलामी? लेकिन अब रिपोर्ट के अनुसार बेंगलूरु, हैदराबाद और गुरुग्राम के टेक हब्स में कंपनियां लंबे घंटों तक काम कर रही हैं।
जहां तक देश में सरकारी कामकाज की बात है, यहां सप्ताह में दो दिन की छुट्टी होती है। कुछ लोगों का मानना है कि इससे उत्पादकता कम होती है। काम लंबित रहने जाने से बोझ बढ़ता है। सरकारी सेवाओं में देरी हो सकती है और जनता को असुविधा का सामना करना पड़ता है। वहीं, इसके समर्थकों का कहना है कि लगातार काम कर्मचारियों को थका देता है। दो छुट्टी से मनोबल बना रहता है। काम और जीवन में संतुलन उत्पादकता को बढ़ावा देता है।