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अमेरिका, रूस और चीन में होड़…तीनों करना चाहते हैं आर्कटिक के संसाधनों पर कब्ज़ा

आर्कटिक के संसाधनों पर कब्ज़े के लिए तीन देशों में होड़ मची हुई है। दुनिया के उत्तरी छोर पर किस देश का आधिपत्य होगा और किस वजह से ये देश ऐसा करना चाहते हैं? आइए नज़र डालते हैं।

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Jul 21, 2025
Arctic (Representational Photo)

दुनियाभर का ध्यान पृथ्वी के सबसे दूरस्थ और चुनौतीपूर्ण माने जाने वाले आर्कटिक (Arctic) क्षेत्र पर केंद्रित होता दिख रहा है। इसकी वजह है इलाके की बढ़ती सामरिक आर्थिक अहमियतहैं। जलवायु परिवर्तन के चलते हो रहे बदलावों के कारण 2030 के दशक में आर्कटिक में पहली बार बर्फविहीन मौसम का अनुमान जताया गया है, जिससे वहाँ नेविगेशन योग्य समुद्री सतह दिख सकती है। वहीं, अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने 2019 में बताया था कि क्षेत्र में दुनिया के 13% तेल और 30% गैस भंडारों के साथ ही दुर्लभ खनिजों का एक समृद्ध भंडार है। ऐसे में दुनिया की ताकतें यहां वर्चस्व स्थापित करने की होड़ में जुट गई है।

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तीन देशों की हैं आर्कटिक के संसाधनों पर नज़र

अमेरिका (United States Of America), रूस (Russia) और चीन (China)….तीन ऐसे देश हैं जिनकी नज़र आर्कटिक के संसाधनों पर हैं। तीनों ही देश अपने संसाधनों के भंडार को बढ़ाने के साथ ही अपनी अर्थव्यवस्था को मज़बूती देने के लिए आर्कटिक के संसाधनों पर कब्ज़ा जमाना चाहते हैं।


अमेरिका, चीन और रूस में होड़

रूस पहले ही आर्कटिक क्षेत्र का बेहद अहम खिलाड़ी है। उसके क्षेत्र का पांचवां हिस्सा आर्कटिक इलाके में है। आर्कटिक समुद्री तट की आधे से ज़्यादा लंबाई अकेले रूस के हिस्से में आती है। वहीं 2020 की शुरुआत से चीन भी अब इस इलाके में अपनी पकड़ बनाने की कोशिश कर रहा है। चीन ने खुद को 'नियर-आर्कटिक स्टेट' कहा है, जबकि वो न तो इस क्षेत्र के पास स्थित है और न ही उसका कोई आर्कटिक समुद्री तट है। चीन तो आर्कटिक परिषद का सदस्य देश भी नहीं है। फिर भी चीन की कंपनियाँ आर्कटिक क्षेत्र में निवेश के लिए आगे आई हैं। चीन इस क्षेत्र में अपने परमाणु ऊर्जा चालित आइसब्रेकर जहाजों की भी योजना बना रहा है। आर्कटिक में चीन की बढ़ती रुचि अमेरिका के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि आर्कटिक के संसाधनों पर अमेरिका की भी नज़र हैं।

Xi Jinping, Vladimir Putin and Donald Trump

आर्कटिक की आर्थिक-व्यापरिक अहमियत

रूस की अर्थव्यवस्था का लगभग दसवां हिस्सा आर्कटिक के प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से आता है, जिसके आगे आने वाले दिनों में समुद्री मार्ग खुलने की स्थिति में तेजी से बढ़ने का अनुमान है। उधर, आर्कटिक में चीन की सक्रियता का एक बड़ा कारण यह भी है कि यहां बर्फ के पिघलने से उत्तरी समुद्री मार्ग खुल रहे हैं जो स्वेज नहर की तुलना में व्यापार के लिए नया, तेज और संभवतः अधिक सुरक्षित मार्ग बन सकता है। अमेरिका भी अपने आर्थिक और व्यापरिक फायदे के लिए आर्कटिक क्षेत्र में अपनी पकड़ बढ़ाना चाहता है।


आर्कटिक का सामरिक महत्व

आर्कटिक परिषद के जो आठ अहम देश हैं उसमें एक है ग्रीनलैंड (Greenland)। ग्रीनलैंड में कोल्ड वॉर की शुरुआत में ही अमेरिका ने अहम सैन्य ठिकाना बनाया था, जिसे पहले थुले (अब पिटुफिक स्पेस बेस) कहा जाता है। इस बेस पर एक भीमकाय विशाल रडार अमेरिकी संतरी की तरह तैनात है। दावा किया जाता है कि इससे अंतरिक्ष में सक्रिय टेनिस बॉल जितनी छोटी चीज को भी ट्रैक किया जा सकता है। कोई भी परमाणु हथियार ले जा रही बैलिस्टिक मिसाइल अमेरिका और रूस के बीच यहीं से होकर जाएगी। आर्कटिक क्षेत्र में रूस का नागुरस्कोये जैसे एयरबेस अब अपग्रेड होने के बाद ठंड की स्थिति में भी बड़े विमानों का ऑपरेशन संभाल सकता है। इसी इलाके में कोला प्रायद्वीप वह जगह है जहाँ रूस के परमाणु पनडुब्बी बेड़े का बड़ा हिस्सा तैनात है। वो यहाँ आर्कटिक की बर्फ में छिप जाती हैं।

US Space Base in Arctic

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