
पुष्य नक्षत्र में पीएम नरेंद्र मोदी करेंगे नामांकन
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पुष्य नक्षत्र के सिरे पर बहुत से सूक्ष्म तारे हैं जो कांति घेरे के अत्यधिक पास है। पुष्य नक्षत्र के मुख्य रूप से तीन तारे हैं, जो एक तीर (बाण) की आकृति के समान आकाश में दिखाई देते हैं। इसके तीर की नोक कई बारीक तारा समूहों के गुच्छ या पुंज के रूप में दिखाई देती है। आकाश में इसका विस्तार 3 राशि 3 अंश 20 कला से 3 राशि 16 अंश 40 कला तक है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पुष्य का प्राचीन नाम तिष्य शुभ, सुंदर तथा सुख संपदा देने वालाहै। इस नक्षत्र को बहुत शुभ और कल्याणकारी माना जाता है। इस नक्षत्र का प्रतीक चिह्न गाय का थन है, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गाय का दूध पृथ्वी लोक का अमृत है। पुष्य नक्षत्र गाय के थन से निकले ताजे दूध सरीखा पोषणकारी, लाभप्रद और देह और मन को प्रसन्नता देने वाला होता है। इस नक्षत्र में तीन तारे तीर के आगे का तिकोन सरीखे जान पड़ते हैं। ऋग्वेद में इसे तिष्य अर्थात शुभ या मांगलिक तारा भी कहते हैं।
पुष्य नक्षत्र का शुभ योग हर महीने में एक बार बनता है। मान्यता है कि पुष्य नक्षत्र स्थायी होता है़ अत: इस नक्षत्र में खरीदी गई कोई भी वस्तु लंबे समय तक उपयोगी रहती है और शुभ फल प्रदान करती है। पुष्य नक्षत्र पर बृहस्पति (गुरु), शनि और चंद्र का प्रभाव होता है इसलिए सोना, चांदी, लोहा, बही खाता, परिधान, उपयोगी वस्तुएं खरीदना और बड़े निवेश करना इस नक्षत्र में अत्यंत शुभ माने जाते हैं। इस नक्षत्र के देवता बृहस्पति हैं जिसका कारक सोना है। स्वामी शनि है इसलिए लोहा और चंद्र का प्रभाव रहता है इसलिए चांदी खरीदते हैं। स्वर्ण, लोहा या वाहन आदि और चांदी की वस्तुएं खरीदी जा सकती है। मान्यता है कि पुष्य नक्षत्र में मांगलिक कार्य करने से मां लक्ष्मी की सालभर कृपा बनी रहती है।
वर्ष के सभी पुष्य नक्षत्रों में कार्तिक पुष्य नक्षत्र (Kartik pushya nakshatra) का विशेष महत्व है, क्योंकि इसका संबंध कार्तिक मास के प्रधान देवता भगवान लक्ष्मी नारायण से है। इसीलिए दिवाली से पहले आने वाला पुष्य नक्षत्र सबसे खास और अत्यंत लाभकारी माना जाता है। पुष्य को ऋग्वेद में वृद्धिकर्ता, मंगलकर्ता और आनंदकर्ता कहा गया है।
पुष्य नक्षत्र का संयोग जिस भी दिन या वार के साथ होता है उसे उस वार से कहा जाता है। यदि यह नक्षत्र रविवार, बुधवार या गुरुवार को आता है, तो इसे अत्यधिक शुभ माना गया है। इस नक्षत्र के गुरु-पुष्य, शनि-पुष्य और रवि-पुष्य योग सबसे शुभ माने जाते हैं। चंद्र वर्ष के अनुसार महीने में एक दिन चंद्रमा पुष्य नक्षत्र के साथ संयोग करता है। अत: इस मिलन को अत्यंत शुभ कहा गया है। पुष्य नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अतिविशिष्ट, सर्वगुण संपन्न और भाग्यशाली होते हैं।
पुष्य नक्षत्रः सोमवार 13 मई सुबह 11:23 बजे से मंगलवार 14 मई दोपहर 01:05 बजे तक
9 जून रविवार 2024
आरंभ: 9 जून रात 08:20 बजे
अंत: 10 जून रात 09:40 बजे
7 जुलाई रविवार 2024
आरंभ: 7 जुलाई सुबह 04:48 बजे
अंत: 8 जुलाई सुबह 06:03 बजे
3 अगस्त शनिवार 2024
आरंभ: 3 अगस्त सुबह 11:59 बजे
अंत: 4 अगस्त दोपहर 01:26 बजे तक
30 अगस्त शुक्रवार 2024
आरंभ: 30 अगस्त शाम 05:56 बजे
अंत: 31 अगस्त शाम 07:39 बजे तक
26 सितंबर गुरुवार 2024
आरंभ: 26 सितंबर रात 11:34 बजे
अंत: 28 सितंबर सुबह 01:20 बजे तक
24 अक्टूबर गुरुवार 2024
आरंभ: 24 अक्टूबर सुबह 06:15 बजे
अंत: 25 अक्टूबर सुबह 07:40 बजे
20 नवंबर बुधवार 2024
आरंभ: 20 नवंबर दोपहर 02:50 बजे
अंत: 21 नवंबर दोपहर 03:35 बजे तक
18 दिसंबर बुधवार 2024
आरंभ: 18 दिसंबर सुबह 12:44 बजे
अंत: 19 दिसंबर सुबह 12:58 बजे
Updated on:
12 May 2024 03:54 pm
Published on:
12 May 2024 03:41 pm
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