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यम द्वितीया के दिन क्यों की जाती है चित्रगुप्त की पूजा?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कायस्थ जाति को उत्पन्न करने वाले भगवान चित्रगुप्त का जन्म यम द्वितीया के दिन हुआ। इसी दिन कायस्थ जाति के लोग अपने घरों में भगवान चित्रगुप्त की पूजा करते हैं।

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Rajeev sharma

Nov 12, 2015

विश्व में अपनी समृद्ध संस्कृति और परम्पराओं के लिए भारत की अपनी विशिष्ट पहचान है जिसके कारण पूरे वर्ष यहां कोई न कोई पर्व-त्योहार मनाया जाता रहता है लेकिन चित्रगुप्त पूजा एक ऐसा त्योहार है, जिसे प्रायः कायस्थ समाज के लोग ही मनाते हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कायस्थ जाति को उत्पन्न करने वाले भगवान चित्रगुप्त का जन्म यम द्वितीया के दिन हुआ। इसी दिन कायस्थ जाति के लोग अपने घरों में भगवान चित्रगुप्त की पूजा करते हैं।

उन्हें मानने वाले इस दिन कलम और दवात का इस्तेमाल नहीं करते। पूजा के आखिर में वे संपूर्ण आय-व्यय का हिसाब लिखकर भगवान को समर्पित करते हैं। चित्रगुप्त का जन्म यम द्वितीया के दिन ही हुआ, इसका कोई निश्चित प्रमाण नहीं है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि रचयिता भगवान ब्रह्मा ने एक बार सूर्य के समान अपने ज्येष्ठ पुत्र को बुलाकर कहा कि वह किसी विशेष प्रयोजन से समाधिस्थ हो रहे हैं और इस दौरान वह यत्नपूर्वक सृष्टि की रक्षा करें।

इसके बाद बह्माजी ने 11 हजार वर्ष की समाधि ले ली। जब उनकी समाधि टूटी तो उन्होंने देखा कि उनके सामने एक दिव्य पुरुष कलम दवात लिए खड़ा है।

ब्रह्माजी ने उससे उसका परिचय पूछा तो वह बोला, मैं आप के शरीर से ही उत्पन्न हुआ हूं। आप मेरा नामकरण करने योग्य है और मेरे लिये कोई काम है तो बताएं।

ब्रह्माजी ने हंसकर कहा, मेरे शरीर से तुम उत्पन्न हुए हो. इसलिए कायस्थ तुहारी संज्ञा है और तुम पृथ्वी पर चित्रगुप्त के नाम से विख्यात होगे। धर्म-अधर्म पर धर्मराज की यमपुरी में विचार तुम्हारा काम होगा। अपने वर्ण में जो उचित है उसका पालन करने के साथ-साथ तुम संतान उत्पन्न करो।

इसके बाद ब्रह्माजी चित्रगुप्त को आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गए। बाद में चित्रगुप्त का विवाह एरावती और सुदक्षणा से हुआ। सुदक्षणा से उन्हें श्रीवास्तव, सूरजध्वज, निगम और कुलश्रेष्ठ नामक चार पुत्र हुए जबकि एरावती से आठ पुत्र रत्न प्राप्त हुए जो पृथ्वी पर माथुर, कर्ण, सक्सेना, गौड़, अस्थाना, अबष्ठ, भटनागर और बाल्मीक नाम से विख्यात हुए।

चित्रगुप्त ने अपने पुत्रों को धर्म साधने की शिक्षा दी और कहा कि वे देवताओं का पूजन पितरों का श्राद्ध तथा तर्पण का पालन यत्नपूर्वक करें। इसके बाद चित्रगुप्त स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गए और यमराज की यमपुरी में मनुष्य के पाप-पुण्य का विवरण तैयार करने का काम करने लगे।

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