
अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ
आजमगढ़. पंजाब के उपचुनाव में करारी हार के बाद बीजेपी यूपी का निकाय चुनाव जीत जनता के बीच यह संदेश देने के लिए बेचैन है कि अभी उसका जनाधार कम नहीं हुआ है। लेकिन मुलायम का गढ़ कहे जाने वाले आजमगढ़ में बीजेपी अपने ही चक्रव्यूह में फंसती दिख रही है। सीट सामान्य होने के बाद दावेदारों की संख्या काफी बढ़ गई। वहीं प्रदेश अध्यक्ष की रिश्तेदार भी नगरपालिका अध्यक्ष की दौड़ में शामिल हो गयी है। पूर्व में मंत्री रहते हुए महेंद्र पांडेय पर एक भूमि विवाद में रिश्तेदारों की पैरवी का आरोप लग चुका है अब चर्चा इस बात की है कि टिकट में भी वे उनकी मदद कर सकते हैं। ऐसे में पार्टी में बगावती सुर भी दिख रहे है। सूत्रों की माने तो एक नेता तो पहले ही सपा में दस्तक दे चुका है लेकिन यहां उसकी दाल नहीं गली। यही हाल रहा तो यहां कुर्सी बीजेपी के हाथ से फिसल सकती है।
बता दें कि आजमगढ़ नगरपालिका सीट पर बीजेपी का कब्जा है। इंदिरा जायसवाल इस समय नगरपालिका चेयरमैन हैं। नगर के विकास और सफाई के मामले को लेकर सभासदों के साथ ही आम आदमी में काफी विरोध है। इनके अलावा बीजेपी सुनील राय, चंद्रशेखर सिंह, अजय सिंह, मेनका श्रीवास्तव, व्यापारी नेता संत प्रसाद अग्रवाल और संगीता तिवारी टिकट की दावेदारी कर रही है।
सूत्रों के मुताबिक संगीता तिवारी चुंकि प्रदेश अध्यक्ष की रिश्तेदार हैं इसलिए उनकी दावेदारी सबसे मजबूत मानी जा रही है लेकिन इनके पास न तो राजनीतिक अनुभव है और ना ही अपना जनाधार। रहा सवाल चंद्रशेखर सिंह का तो उन्होंने पूरे शहर को पोस्टर से पाट दिया है लेकिन इनके पास भी राजनीति का अनुभव नहीं है। मेनका तिवारी एक सरकारी कर्मचारी के भाई की पत्नी हैं। सुनील राय दो बार सदर से विधानसभा चुनाव लड़ चुके है तो संत प्रसाद अग्रवाल लंबे समय से व्यापारियों की राजनीति लंबे समय से कर रहे हैं। अजय सिंह भी भाजपा में विभिन्न पदो पर रह चुके है।
ऐसे में पार्टी के लिए यह आसान नहीं है कि वह किसे मैदान में उतारे। कारण कि दावेदारों में कई ऐसे है जो टिकट न मिलने की स्थित में निर्दल ताल ठोक सकते है। सूत्रों की माने तो नगरपालिका अध्यक्ष ही किसी भी हालत में चुनाव लड़ने की बात कर रही है। वैसे अभी उनकी तरफ से ऐसा कोई बयान नहीं आया है लेकिन शहर में यह बात तैर रही है। वहीं चर्चा इस बात की है कि अनुभव भले ही न हो लेकिन रिश्तेदारी की वजह से संगीता सबसे भारी हैं। वैसे टिकट किसे मिलेगा यह स्थिति तीन से चार दिन में साफ हो जायेगी लेकिन यह तय है कि यदि कैडर के बजाय रिश्तेदारी या बाहरियों को टिकट दिया गया तो भाजपा के लिए सीट बचाना आसान नहीं होगा।
by RAN VIJAY SINGH
Published on:
21 Oct 2017 04:13 pm
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