लॉकडाउन में मजदूरों का अपने घरों की ओर जाने का सिलसिला जारी है। जिन मजदूरों ने पंजीकरण कराया है उन्हें तो बसों के माध्यम से घर भेजा जा रहा है, लेकिन जो पंजीकरण नहीं करा सके उनका साथ सरकारी हाकिमों ने निभाने से हाथ खड़े कर दिए है। वह मजदूर पैदल ही सैंकड़ो किलोमीटर का मुश्किल भरा सफर तय करने को मजबूर है। वह सरकारी सिस्टम के पास अपनी पीड़ा लेकर पहुंचते है तो उन्हें दुत्कार ही मिलता है। पंजीकरण नहीं होने की बात कहकर अधिकारी भगा देते है। मजदूरों के पैदल चलने पर सरकार जरूर जागी है और आदेश जारी किए की कोई भी मजदूर पैदल नहीं चलेगा।
इस आदेश का कितना पालन हो रहा है इसकी बानगी बागपत से गुजर रहे मजदूरों के कारवाँ से देखी जा सकती है। ईस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस वे पर मजदूरों का कारवां पैदल चल रहा है। सोनीपत जनपद में बॉर्डर वहां की पुलिस उनकी कोई सुनवाई नहीं करती है। बागपत यमुना बॉर्डर पर आते ही उन्हें वापस कर दिया जाता है। राजस्थान, पंजाब, हरियाणा से पैदल चलकर आने वाले मजदूरों को यहां से वापस जाने को कहा जाता है तो वह अधिकारियों की खुशामद तक करते है, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं होती। मजबूरी में वह पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों से बचने के लिए खेतों के रास्ते चलने को मजबूर है
छोटे बच्चे, महिलाएं भी पैदल चलने को मजबूर है। उनके कंधे पर वजनी बैग उनका सफर ओर अधिक कठिन कर रहा है। चिलचिलाती धूप में थक कर वह खेतो में ही पेडों के नीचे लेटने को मजबूर है। भूखे प्यासे मजदूरों की पीड़ा सरकारी हाकिम देखने को तैयार नहीं है। आसपास के गांवो के ग्रामीण उनके खाने का प्रबंध कर रहे है। पुलिस प्रशासनिक अधिकारियों को तो सरकार के आदेश की भी चिंता नहीं है। मजदूरों का कहना है कि उनके जाने के लिए कोई संसाधन नहीं दिए जा रहे हैं।