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बैंगलोर

काली वन क्षेत्र में अब तक 15 जंगली भैसों की मौत

जोयिडा तालुक के बाघ संरक्षित काली वन क्षेत्र में बीते एक महीने से लगातार जंगली भैंसों की मौत हो रही है। भैंसों की मृत्यु की वजह महामारी होने का अनुमान लगाया जा रहा है।

बैंगलोरJun 04, 2019 / 10:56 pm

शंकर शर्मा

काली वन क्षेत्र में अब तक 15 जंगली भैसों की मौत

काली वन क्षेत्र में अब तक 15 जंगली भैसों की मौत

सिरसी-कारवार. जोयिडा तालुक के बाघ संरक्षित काली वन क्षेत्र में बीते एक महीने से लगातार जंगली भैंसों की मौत हो रही है। भैंसों की मृत्यु की वजह महामारी होने का अनुमान लगाया जा रहा है।

जानकारी के अनुसार पिछले एक महीने से जोयिडा काली बाघ संरक्षित वन क्षेत्र में अब तक १५ जंगली भैंसों की मौत हो चुकी है। इनमें से चार जंगली भैंसों का परीक्षण कर मौत के कारणों का पता लगाने की कोशिश की गई। वन विभाग के रिकॉर्ड में सिर्फ चार भैसों के मरने की बात कही गई है।

जोयिडा वन क्षेत्र के कट्टे, कोडुगाली व कडगर्णी में जंगली भैसों के शव पाए गए हैं। इसी प्रकार कुंबार वाडा, कैसलरॉक में भी जंगली भैंसों के मरने की जानकारी है। दिगालु जंगल में मरने वाले जंगली भैंसे का शिवमोग्गा वन्य जीव इकाई के पशु चिकित्सक डॉ. विनय के नेतृत्व में परीक्षण कर नमूनों को आगे की जांच के लिए सुरक्षित रखा गया है।


हाल ही में उत्तर कन्नड़ जिले के वनों में कई वानरों की मृत्यु कैसनूरु नामक बीमारी की चपेट में आने से हुई थी। मंकी फीवर के कारण पहले भी कई लोग अपनी जान से हाथ धो चुके हैं। कई लोग भैसों की मौत की वजह पानी की किल्लत मान रहे है लेकिन जिन क्षेत्रों में जंगली भैसों के शव मिले हैं वहां पानी की कोई किल्लत नहीं थी। जंगली भैंसों की मृत्यु के कारणों का पता फॉरेंसिक जांच के बाद ही चल सकेगा।


इसी प्रकार प्रदेश का सबसे अधिक वनों वाला क्षेत्र कहलाए जाने वाले उत्तर कन्नड़ जिले के वन क्षेत्र के प्राणी भी कई समस्याओं से जूझ रहे हैं। हाल ही में काली नदी के बैक वाटर में पानी पीने गए हाथी को मगरमच्छ का शिकार होना पड़ा था। वहीं पानी की तलाश में गांव में घुस आए हरिण को भी श्वानों का शिकार होना पड़ा। यह घटना मुंडगोड़ तालुक में हुई। वन विभाग की ओर से इन जंगली जानवरों की रक्षा के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। जंगली प्राणियों के आवास, भोजन, जल तथा उनके विचरण में अड़चनें आ रही हैं।

मिट्टी का परिवहन, वृक्षों की कटाई तथा जानवरों का शिकार इसका कारण बताए जा रहे हैं। इतना सब कुछ होने के बावजूद विभागीय अधिकारी आंखें मूंदे हुए हैं। क्षेत्र में पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने में वन विभाग काफी हद तक विफल रहा है। बढ़ते तापमान, सूखे तालाब एवं नहरों सहित अन्य जलस्रोत सूख चुके हैं। आज बूंद-बूंद पानी के लिए भी लोगों को तरसना पड़ रहा है।

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