धर्ममय जीवन ही साधक को अनाथ से सनाथ बनाता है
महावीर धर्मशाला में धर्मसभा का आयोजन
धर्ममय जीवन ही साधक को अनाथ से सनाथ बनाता है
बेंगलूरु. स्थानीय वीवीपुरम स्थित महावीर धर्मशाला में चातुर्मास कर रही अनुष्ठान आराधिका साध्वी डॉ. कुमुदलता की निश्रा में साध्वी महाप्रज्ञा ने उत्तराध्ययन सूत्र आराधना के बीसवें महानिग्र्रंथीय अध्ययन के माध्यम से अनाथीमुनि और मगध सम्राट श्रेणिक के मध्य हुए परस्पर अनाथ और सनाथ की सुंदर विवेचना की। उन्होंने कहा कि व्यक्ति के पास धन सम्पत्ति, अपार पद प्रतिष्ठा, भौतिक ऐश्वर्य सुख के होने से ही कोई जीव सनाथ नहीं बन जाता। जो साधक अपनी पांचों इंद्रियो पर नियंत्रण रखते हुए छह कायों की रक्षा करते हुए संयम की परिपालना करता है व अनुसाशित जीवन जीता है। वही सच्चा सनाथ कहलाता है। बाहरी वैभव आदि सब कुछ पाकर भी मनुष्य इंद्रियों पर अनुशासन नहीं कर पाता तो वह अनाथ ही है। हमें सनाथ बनने के लिए आत्मा पर लगे पूर्व भव के अशुभ कर्मों का फल समभावपूर्वक भोगकर धर्म की शरण में रहकर अनाथ से सनाथ बनना है। हमें आत्म बल मजबूत कर, हमेशा विचार करना है कि जीव ही करता है और जीव ही भोगता है, बाकी निमित मात्र हैं। अशुभ कर्म के उदय होने से कोई नहीं बचा सकता। साध्वी ने 21, 22 एवं 23 वें अध्ययन के समुद्रपाल, रचनेमी-राजीमती ,केशी-गौतम पर भी क्रमश: सारगर्भित प्रकाश डाला।
अनुष्ठान आराधिका साध्वी कुमुदलता ने पुष्य नक्षत्र का महत्व बताते हुए आगामी 26 अक्टूबर को होने वाले महामंगलकारी घंटाकर्ण महावीर जाप अनुष्ठान में भाग लेने की प्रेरणा दी। शुरुआत में साध्वी राजकीर्ति ने परमात्मा की अंतिम देशना उत्तराध्ययन सूत्र के 21 से 23 वें अध्ययन के मूल पाठ का वाचन किया तथा पुच्छीसुणं का श्रद्धालुओं को सस्वर पारायण करवाया। पुष्य नक्षत्र आयंबिल तप आराधना करने वाले आराधकों की अनुमोदना की गई। पधारे हुए अतिथियों का वर्षावास समिति के पदाधिकारियों ने स्वागत किया। धर्मसभा का संचालन चेतन दरड़ा ने किया। आभार अशोक रांका ने जताया।
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