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गर्मी बढ़ने के साथ मिट्टी के डिजाइनर मटके बने पसंद

 गर्मी बढ़ते ही मिट्टी के मटकों की मांग ने जोर पकड़ लिया है। आईटी सिटी में तेज धूप और उमस से परेशान लोग अब फ्रिज और कूलर के साथ-साथ पारंपरिक देशी फ्रिज यानी मिट्टी के मटके, घड़े और सुराही की ओर रुख कर रहे हैं। खास तौर पर डिजाइनर मटकों का क्रेज लोगों में खूब […]

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 गर्मी बढ़ते ही मिट्टी के मटकों की मांग ने जोर पकड़ लिया है। आईटी सिटी में तेज धूप और उमस से परेशान लोग अब फ्रिज और कूलर के साथ-साथ पारंपरिक देशी फ्रिज यानी मिट्टी के मटके, घड़े और सुराही की ओर रुख कर रहे हैं। खास तौर पर डिजाइनर मटकों का क्रेज लोगों में खूब देखा जा रहा है।

शहर में बढ़ती गर्मी ने हर वर्ग को प्रभावित किया है। जहां मध्यम और संपन्न परिवार गर्मी से बचने के लिए एयर कंडीशनर, फ्रिज और कूलर खरीद रहे हैं, वहीं महंगाई की मार झेल रहे गरीब परिवारों के लिए मिट्टी का मटका ही सहारा बना हुआ है। इसके अलावा, कुछ लोग शौक के लिए भी मटके खरीद रहे हैं, जिससे बाजार में इनकी मांग और बढ़ गई है। शहर के फुटपाथों से लेकर मुख्य बाजारों तक, दुकानों पर मटकों की भरमार देखने को मिल रही है। दुकानदारों का कहना है कि इस साल साधारण मटकों की तुलना में नल वाले घड़े और सुराही की डिमांड में जबरदस्त उछाल आया है।

मल्लेश्वरम के दुकानदार वीवी मणिकुमार बताते हैं, गर्मी बढ़ने के साथ ही ग्राहक मटके की खरीदारी के लिए पहुंच रहे हैं। डिजाइनर मटके खूब पसंद किए जा रहे हैं। हम महाराष्ट्र, गुजरात और कोलकाता जैसे शहरों से मटके मंगवा रहे हैं। कीमत की बात करें तो साधारण बिना टोटी वाला मटका 200 रुपए में मिल रहा है, जबकि टोटी वाले मटके 300 से 450 रुपए तक के हैं। वहीं, डिजाइनर मटकों की कीमत 600 से 800 रुपए तक जा रही है, जो उनके आकार और डिजाइन पर निर्भर करती है।

शौक और सेहत का संगम

मटकों की मांग सिर्फ जरूरतमंदों तक सीमित नहीं है। आर्थिक रूप से संपन्न लोग भी इन्हें खरीदने में रुचि दिखा रहे हैं। ग्राहक सुरेंद्र कुमार और राजीव कुमार कहते हैं, घर में फ्रिज तो सालों से है, लेकिन मटके के पानी का स्वाद और ठंडक अनोखी होती है। इसमें पानी पीने से मिट्टी की सौंधी खुशबू और हल्की मिठास मिलती है। साथ ही, स्वास्थ्य को लेकर भी कोई चिंता नहीं रहती। इस तरह, बेंगलूरु में गर्मी के बढ़ते तापमान के बीच मिट्टी के मटके न सिर्फ राहत का जरिया बन रहे हैं, बल्कि लोगों के शौक और परंपरा को भी जिंदा रख रहे हैं।