बाराबंकी. मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर, लोग साथ आते गये और कारवां बनता गया। मंजिलें उन्ही को मिलती हैं जिनके सपनो में जान होती है, पंखो से कुछ नहीं होता हौसलों में उडान होती है। इन्ही चंद शब्दों को चरितार्थ करके दिखाया है उत्तर-प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी जनपद के मामूली पढ़े-लिखे रामशरण वर्मा ने। जिन्होंने अपने छोटे से गाव में रहकर वह कामयाबी हासिल की है, जिसका कायल आज हर वो इंसान है जिसने सपनों को सपनों तक ही सीमित रखा। हकीकत में कभी नहीं उतारा। लेकिन रामशरण वर्मा ने अपने सपनों को हकीकत में बदल दिया है।