रात ग्यारह बजे रेलवे स्टेशन परिसर पर तीन-चार समूह में लोग बैठे हुए थे। दो जने एक ही कम्बल में परिसर की सीढिय़ों के समीप सोए हुए थे। इनके नजदीक एक श्वान भी सर्दी के चलते कुंडली जमाकर बैठा था। इसी परिसर में तीन अन्य लोगों के समूह कम्बल ओढ़ कर एकदम सटे हुए बैठे थे। यह लोग पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले से यहां दिहाड़ी मजदूरी के लिए आए हुए थे। इनका कहना था कि देर रात को जब पुलिस गश्त थमेगी, तब वे क्षेत्र की दुकानों की थड़ों पर जाकर सोएंगे। इससे तड़के आसमां से टपकने वाली ओस से बचाव हो जाएगा। रैन बसेरों में उन्हें नियमित रूप से प्रवेश नहीं मिलता।
नगर परिषद की ओर से शहर के बस परिसर में एक अस्थाई टेंट लगा रैन बसेरा बनाया हुआ है, लेकिन यह टेंट आकार में छोटा होने से एक दर्जन लोग ही इसमें समा पा रहे थे। हालांकि टेंट में रात गुजार रहे बच्चों व महिलाओं को सर्दी से खासी राहत मिल रही थी। टेंट के बाहर रोडवेज की कुर्सियों पर बैठकर रात गुजार रहे इनके परिजनों का कहना था कि बच्चों व महिलाओं की सुरक्षा को लेकर वे सोते, जागते जैसे-तैसे रात तो गुजार ही लेंगे। यहां शौचालय की व्यवस्था होने से भी सुबह इधर-उधर भटकना नहीं पड़ेगा।
नगर परिषद की ओर से नगर भवन के सामने स्थित नगरपालिका धर्मशाला व कोटा रोड पर पब्लिक पार्क के निकट अग्निशमन भवन में स्थायी रैन बसेरा बनाए हुए हैं। नगरपालिका के रैन बसेरा के कभी खुलने व कभी बंद रहने से लोगों को यहां आश्रय मुश्किल होता है। अग्निशमन कार्यालय का रैन बसेरा शहर से दूर होने से कम ही लोग पहुंच पाते हैं। रात को इस रैन बसेरा में गिने-चुने लोग ही थे तथा उन्होंने दरवाजे को अंदर से कुंडी लगा बंद किया हुआ था। इस रैन बसेरा में तमाम सुविधाएं थीं।