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अब दोगुने अंडे देगी गिनीफाउल, दो साल के शोध के बाद केंद्रीय पक्षी अनुसंधान को मिली सफलता

वैज्ञानिकों के इस शोध के बाद इस प्रजाति को पालने वाले किसानों की आय दोगुनी हो सकेगी।

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बरेली

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Amit Sharma

May 20, 2018

guinea fowl

अब दोगुने अंडे देगी गिनीफाउल, दो साल के शोध के बाद केंद्रीय पक्षी अनुसंधान को मिली सफलता

बरेली। अप्रेल से अगस्त तक अंडे देने वाली गिनीफाउल मुर्गी अब साल भर अंडा देगी। दो साल की कड़ी मेहनत के बाद केंद्रीय पक्षी अनुसंधान बरेली के वैज्ञानिकों ने रिसर्च कर ये सफलता पाई है। रिसर्च के बाद इस प्रजाति की मुर्गी में अंडा देने की क्षमता दोगुनी हो गई है पहले गिनीफाउल गर्मी के महीनों में यानि सिर्फ अप्रेल से अगस्त माह के बीच ही अंडे देती थी लेकिन अब ये मुर्गी जाड़े के महीनों में भी अंडे देगी। वैज्ञानिकों के इस शोध के बाद इस प्रजाति को पालने वाले किसानों की आय दोगुनी हो सकेगी।

अंडे देने की क्षमता हुई दोगुनी

केंद्रीय पक्षी अनुसंधान (सीएआरआई) की प्रधान वैज्ञानिक डॉक्टर सिम्मी तोमर ने बताया कि गिनीफाउल प्रजाति अफ्रीका की है और ये पहले अप्रेल और अगस्त के मध्य ही लगभग 100 से 110 अंडे देती थी लेकिन शोध के बाद अब ये मुर्गी हर मौसम में अंडे देने लगी है। उन्होंने बताया कि दो साल तक उनकी टीम ने इस पर शोध किया जिसके बाद टीम को यह सफलता प्राप्त हुई है।उनका कहना है कि पहले ये मुर्गी सिर्फ गर्मी के महीने में ही अंडे देती थी लेकिन उनकी टीम ने आर्टिफीशियल गर्मी पैदा कर सर्दी के महीने में भी इस मुर्गी को अंडा देने वाली बनाया है। अब ये मुर्गी साल में लगभग 220 अंडे देने लगी है।

ऐसे हुआ शोध

वैज्ञानिक सिम्मी तोमर ने बताया कि गिनीफाउल की सर्दी में प्रजनन क्षमता बढ़ाने के लिए सर्दी के मौसम में बाड़े के आस पास आर्टीफीशियल प्रकाश की व्यस्वथा बल्ब लगा कर की गई और टाइमर की मदद से 18 घण्टे प्रकाश की व्यवस्था की गई। गिनीफाउल की आंखों के जरिए प्रकाश प्रेटीट्यूरी ग्लैंड में जाता है। इसी ग्लैंड में अंडे के लिए जरूरी हार्मोंस तैयार होते हैं। जिस कारण सर्दियों में प्रकाश की मात्रा बढ़ने पर गिनीफाउल में हार्मोनल बदलाव तेजी से हुए, और सर्दी में भी अंडे देने लगी है। इसके साथ ही खाने में प्रोटीन की मात्रा भी बढ़ाई गई जिसे 16 से बढ़ाकर 20 प्रतिशत किया गया और ये प्रयोग भी सफल रहा। उन्होंने बताया कि हम लोगों का ये शोध सफल रहा कोई भी मुर्गी पालक इसे अपना सकता है।

कम खर्च होता है पालन में

केंद्रीय पक्षी अनुसंधान की प्रधान वैज्ञानिक डॉक्टर सिम्मी तोमर ने बताया कि इस प्रजाति की मुर्गी पालने में ज्यादा खर्च नही आता है और इसके रखरखाव में भी ज्यादा खर्च नही होता है और ये मुर्गी चुग कर अपना भोजन करती है और इसके लिए दवाइयों की भी जरूरत नही पड़ती है और इसके अंडे का कवच भी दूसरी मुर्गियों की तुलना में मजबूत होता है। उन्होंने बताया कि अभी ज्यादा लोग इसके बारे में नही जानते है इस लिए इसका पालन बहुत कम होता है।