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बरेली

स्थानीय नहीं बाहरी नेता को पसंद करती है यहाँ की जनता

पीलीभीत सीट जहाँ गांधी परिवार का गढ़ बन चुकी है तो वही बदायूं सीट पर सैफई के यादव परिवार का सिक्का चलता है।

बरेलीApr 08, 2019 / 02:05 pm

jitendra verma

बरेली। पीलीभीत और बदायूं मंडल की दो ऐसे लोकसभा क्षेत्र है जहाँ पर जनता ने स्थानीय प्रत्याशी से ज्यादा बाहरी प्रत्याशी को तवज्जो दी है और इन दोनों सीट पर ही लम्बे समय से बाहरी प्रत्याशी का कब्जा चला आ रहा है। पीलीभीत सीट जहाँ गांधी परिवार का गढ़ बन चुकी है तो वही बदायूं सीट पर सैफई के यादव परिवार का सिक्का चलता है। मौजूदा समय में दोनों ही सीट पर इन दोनों के परिवार के सदस्यों का ही कब्जा है और एक बार फिर इन्ही दोनों परिवार के सदस्य चुनाव मैदान में है।
बदायूं में धर्मेंद्र

रुहेलखंड की वीआईपी सीट बदायूं में लम्बे समय से बाहरी प्रत्याशी ही जीत दर्ज कर रहा है। यहाँ पर 1984 में कांग्रेस के सलीम इकबाल शेरवानी ने जीत दर्ज की थी जिसके बाद 1989 में हुए चुनाव में जनता दल के बाहरी प्रत्याशी शरद यादव इस सीट से लड़कर संसद पहुंचे। 1991 में भाजपा के चिन्मयानंद ने यहाँ जीत दर्ज की ये भी बाहर से आकर बदायूं में चुनाव लड़े। 1996 में यहाँ पर समाजवादी पार्टी ने सलीम शेरवानी को चुनाव मैदान में उतारा और सलीम शेरवानी ने जीत दर्ज की। 1996 के बाद से ये सीट सपा का मजबूत किला बन चुकी है। सपा के टिकट पर सलीम शेरवानी ने यहाँ चार बार जीत दर्ज की। सलीम शेरवानी के बाद 2009 और 2014 में सैफई परिवार के धर्मेंद्र यादव ने यहाँ से चुनाव लड़ा और दोनों ही बार जीत दर्ज की। इस बार इस सीट के लिए मुकाबला कर रहे तीनों प्रमुख प्रत्याशी सपा के धर्मेंद्र यादव, भाजपा की संघमित्रा मौर्य और कांग्रेस के सलीम शेरवानी बाहर के है।
पीलीभीत में गांधी परिवार
बदायूं की तरह ही पीलीभीत की जनता ने भी बाहरी प्रत्याशी को सर आँखों पर बैठाया है। इस सीट पर बरेली के मोहन स्वरूप, हरीश गंगवार और भानुप्रताप ने जीत दर्ज की। जबकि मेनका गांधी यहाँ से छह बार सांसद चुनी जा चुकी हैं। मेनका ने 1989 में जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीता, लेकिन दो साल बाद राम लहर में हुए चुनाव में ही बीजेपी ने यहां जीत हासिल की। बीजेपी के डा. परशुराम गंगवार ने उन्हें हरा दिया। उसके बाद 1996 से 2004 तक लगातार मेनका गांधी ने लगातार चार बार यहां से चुनाव जीता। इनमें दो बार निर्दलीय और 2004 में बीजेपी के टिकट से जीत हासिल की थी। 2009 में मेनका गांधी ने अपने बेटे वरूण गांधी के लिए यह सीट छोड़ी और वरूण गांधी सांसद चुने गए। लेकिन 2014 में वे एक बार फिर यहां वापस आईं और छठी बार यहां से सांसद चुनी गई। इस बार फिर मेनका के बेटे वरुण गांधी यहाँ से प्रत्याशी है।
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