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ये जो गाय दूहती, गोबर लीपती और खेत जाती है..इनके बेटे कलक्टर है

बेटे राज्य ही नहीं देश के अलग-अलग कौने में आइएएस की नौकरी कर जब छुट्टी पर घर आते है तो वही मां के हाथ का सोगरा(बाजरी की रोटी), बिलौैने की छाछ, देसी खाना और वही दुलार मिलता है,जो उनको बचपने में लौटा जाता है।

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ये जो गाय दूहती, गोबर लीपती और खेत जाती है..इनके बेटे कलक्टर है

ये जो गाय दूहती, गोबर लीपती और खेत जाती है..इनके बेटे कलक्टर है

रतन दवे/बाड़मेर
इससे बड़ा उलाहना नहीं दिया जाता कि ऐसी क्या कलक्टर की मां है..., यानि जिसका बेटा कलक्टर हो गया फिर तो उसका रौब सहन किया जा सकता है,लेकिन रेगिस्तान की गांव-गलियों और खेत खलिहानों से कलक्टर निकले तो इन गुदड़ी के लालों के कमाल पर मां इतरा नहीं रही है। वे आज भी अपने ग्रामीण परिवेश की जिंदगी में मस्त है। बेटे राज्य ही नहीं देश के अलग-अलग कौने में आइएएस की नौकरी कर जब छुट्टी पर घर आते है तो वही मां के हाथ का सोगरा(बाजरी की रोटी), बिलौैने की छाछ, देसी खाना और वही दुलार मिलता है,जो उनको बचपने में लौटा जाता है। तनिक भी नहीं बदली ये कलक्टर की मां कहती है,ये सब बेटों की मेहनत है।

इस मिट्टी से लगाव है
शिव क्षेत्र के ही रावत का गांव के हिंगलाजदान उदयपुर में पुलिस महानिरीक्षक है। 2003 बैच के हिंगलाजदान की मां धापूकंवर रेगिस्तान के इसी गांव में रहती है। ग्रामीण संस्कृति में जीने वाली धापूकंवर कहती है कि घर में बीस गायें है। दो बेटे शिक्षक व एक कृषि का कार्य करता है। वे बताती है कि हिंगलाज सबसे छोटा है और उसकी यह बड़ी कामयाबी उसकी मेहनत हासिल की है। वो गांव में ही रहना पसंद करती है,कहती है कि इस मिट्टी से लगाव है। छोटे-बड़े इसी रेगिस्तान में हुए है,इसलिए यहीं रहते है। बेटा अफसर बना है, वो भी जब यहां आता है तो ऐसे रहता है जैसे पहले रहता था।

खेत में काम छोड़ा न बिलौना करना
भिंयाड़ गांव के आइएएस रमेश जांगिड़ अभी वैष्णोदेवी साइन बोर्ड के चेयरपर्सन है। रमेश के पिता शिक्षक निम्बाराम और मां आशादेवी गांव में ही रहते है, यदाकदा कश्मीर रहकर वापिस आ जाते है। मां आशादेवी गृहणी है और शुरूआत से ही खेतीबाड़ी से लेकर तमाम ग्रामीण जनजीवन के कार्य करती रही। बेटे के अफसर बनने के बाद भी तनिक भी व्यवहार में बदलाव नहीं आया है। बारिश में देवराणी-जेठाणी खेत को निकल पड़ती और शाम बाद घर लौटना, गाय दूहना, बिलौना करना और अन्य कार्य करती रही। आशादेवी सरलता से कहती है कलक्टर रमेश बना है..म्है थोड़ा ही।

गाय दूहती हूं मेरा तो गांव ही अच्छा
डंडाली गांव के गंगासिंह राजपुरोहित 2016 बैच के आइएएस है और अभी गुजरात के छोटा उदयपुर में कलक्टर है। डंडाली गांव में उनकी मां मटकोंदेवी रहती है। ग्रामीण परिवेश में सामान्य गृहणी मटकोदेवी कहती है कि बेटे के कलक्टर बनने के बाद एक-दो बार उसके साथ गई लेकिन मेरा गांव में मन लगता है। यहां खेतीबाड़़ी बारिश में होती है। गाय दूहने, घर का काम करने और गांव की जिंदगी में रहने के आदि है। वो कहती है बेटे के कलक्टर बनने का गौरव है। वो कहती है बेटे ने पूरी मेहनत की है,इसलिए वो कलक्टर है। हां, मां हूं..जब लोग कहते है कलक्टर की मां है तो अच्छा लगता है। वो कहती है हम गांव में जिन संस्कारों में रहे है,वहां कलक्टर की मां होने पर घमण्ड नहीं किय जाता।

खेतों में बीता जीवन, यही भाता है
समदड़ों का तला होडू निवासी आइएएस ओमप्रकाश माचरा मेहसाणा गुजरात मे जिला विकास अधिकारी हैं। 2016 कैडर के आईएएस की माता चूनीदेवी सिणधरी गांव में रहती है,वो कहती है बेटा पहले डॉक्टर फिर कलक्टर बना। बेटे के साथ सोमनाथ पोस्टिंग पर गई थी, उसके बाद कभी नही गई । मुझे गांव में रहना अच्छा लगता है।घर मे गाय है,उसकी सेवा करती हूं। खेती के कार्य में भी हाथ बंटाती हूं। वो कहती है कि खेतों में काम और गायों के साथ जीवन बीता है, बस यही अच्छा लगता है।


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