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बड़वानी

राजनीतिक गलियारों में तेज हुई हलचल, भोपाल-दिल्ली दौड़ लगा रहे उम्मीदवार

भाजपा के लिए चार प्रत्याशियों के नाम आए सामने, कांग्रेस में दर्जनभर दौड़ में, कांग्रेस रखना चाहेगी विस की लय बरकरार, भाजपा के सामने गढ़ बचाने की चुनौती, जीतने वाले उम्मीदवार पर ही दांव खेलेंगे दोनों पार्टियों के वरिष्ठ नेता

बड़वानीMar 13, 2019 / 10:25 am

मनीष अरोड़ा

Loksabha Elections

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ऑनलाइन खबर : विशाल यादव
बड़वानी. लोकतंत्र के महाकुंभ लोकसभा चुनाव का आगाज होते ही राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। संभावित उम्मीदवारों ने क्षेेत्र में सक्रियता बढ़ाने के साथ ही भोपाल-दिल्ली की दौड़ लगाना भी शुरू कर दिया है।कांग्रेस में जहां उम्मीदवारों की फेहरिस्त लंबी नजर आ रही है।वहीं, भाजपा में गिनती के उम्मीदवार टिकट की दौड़ में बने हुए है। पिछली लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार चुनावी टक्कर कड़ी हो सकती है। इस बार जहां भाजपा के सामने अपने गढ़ को बचाने की चुनौती बनी हुई है। वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस 2018 के विधानसभा चुनाव में मिली जीत की लय को बरकरार रखने की पूरी कोशिश करेगी। हालांकि अभी तक दोनों ही पार्टियों ने प्रत्याशी घोषित नहीं किए हैं, लेकिन दोनों ही पार्टी जीतने वाले उम्मीदवार पर ही दांव लगाएगी।
खरगोन/बड़वानी लोकसभा सीट आरक्षित वर्ग के लिए है। इस लोकसभा में आ रही दो जिलों की आठ विधानसभाओं में से 5 अनुसूचित जनजाति, एक अनुसूचित जाति और दो सामान्य सीट है। आरएसएस के प्रभाव वाली इस लोकसभा सीट पर इस बार भाजपा के लिए कड़ी चुनौती सामने आ रही है। इस लोकसभा में पिछली बार 2013 में आठ विधानसभा सीटों में से चार-चार सीटें दोनों ही दलों के पास थी। पिछली लोकसभा में मोदी फैक्टर के चलते भाजपा ने इस सीट पर ढाई लाख से ज्यादा मतों से जीत हासिल की थी। 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में नजारा बदला और कांग्रेस के खाते में सात और भाजपा के खाते में मात्र एक सीट आई। लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की प्रदेश सरकार ने बड़ा दावं खेलते हुए यहां से तीन कैबिनेट मंत्री बना दिए हैं। जिसके बाद भाजपा के लिए इस सीट पर मुकाबला और भी कठिन नजर आ रहा है।
बाला बच्चन भी देख चुके हार का मुंह
खरगोन/बड़वानी लोकसभा सीट पर पिछले 30 सालों से भाजपा का वर्चस्व रहा है। 1989 से1998 तक इस सीट पर भाजपा के रामेश्वर पाटीदार ने लगातार चार बार जीत दर्जकी। 1999 में कांग्रेस के ताराचंद पटेल ने भाजपा के तिलस्म को तोड़ा। 2004 में भाजपा के कृष्णमुरारी मोघे ने फिर इस सीट पर भाजपा का परचम लहराया। 2007 के उपचुनाव में पहली बार मैदान में उतरे कांग्रेस के अरुण यादव ने भाजपा को मात दी। 2009 में आरक्षित हुईइस सीट पर भाजपा के मकनसिंह सोलंकी ने वर्तमान में प्रदेश के गृहमंत्री बाला बच्चन को 34 हजार वोटों से हराया। इसके बाद 2014 में चली मोदी लहर में पहली बार मैदान में उतरे भाजपा के सुभाष पटेल ने रमेश पटेल को ढाई लाख मतों से मात देकर इस सीट पर कब्जा जमाया।
कांग्रेस में उम्मीदवारों की लंबी कतार
2014 लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र सरकार द्वारा लिए गए नोटबंदी, जीएसटी जैसे फैसलों, किसानों की केंद्र सरकार से चली आ रही नाराजगी के बाद भाजपा के लिए विपरीत माहौल बना है। 2018 के चुनाव में मिली जीत के बाद कांग्रेस में उत्साह नजर आ रहा है। जिसके चलते लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से टिकट के लिए लंबी कतार दिख रही है। कांग्रेस की ओर से प्रदेश के गृृहमंत्री बाला बच्चन की पत्नी प्रवीणा बच्चन, कमला केदार डावर, सुखलाल परमार, विकास डावर, पूर्वविधायक रमेश पटेल, भगवानपुरा विधायक झूमा सोलंकी, बड़वानी नपा अध्यक्ष लक्ष्मण चौहान, बड़वानी जनपद अध्यक्ष मनेंद्र रायसिंह पटेल बिट्टू का नाम सामने आ रहा है।
सांसद की बढ़ सकती है परेशानी
2014 लोस चुनाव में ढाई लाख से अधिक मतों से जीत दर्ज कराने वाले सांसद सुभाष पटेल के लिए इस बार परेशानी बढ़ सकती है। इस बार लोकसभा चुनाव के टिकट की दौड़ में प्रदेश के पूर्वमंत्री अंतरसिंह आर्य भी लगे हुए है। इसके साथ ही भाजपा अजजा मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष गजेंद्र पटेल भी जी तोड़ मेहनत कर रहे है। गजेंद्र पटेल ने तो क्षेत्र में अपनी सक्रियता भी बढ़ा दी है। वही, टिकट की दौड़ में एक ओर नाम भाजपा से राजपुर विधानसभा क्षेत्र की जनपद सदस्य अंजना पटेल का सामने आ रहा है। हालांकि पार्टी पदाधिकारियों ने इन चारों में से किसी के नाम पर भी मोहर लगाने से इनकार कर दिया है और मामला पार्टी के आलाकमान के हाथ में बताया है।

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