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भिलाई

परदे के पीछे सैकड़ों कलाकारों को गढ़कर इस शख्स ने कैसे दिया रंगमंच को नया आयाम, जरूर पढि़ए

प्रदेश के ऐसे ही व्यक्तित्व डॉ. योगेंद्र चौबे जिनसे आज हम आपको रूबरू करा रहे हैं। जिन्होंने भिलाई प्रवास के दौरान अपने अनुभवों को पत्रिका से साझा किया

भिलाईSep 21, 2017 / 12:35 pm

Dakshi Sahu

drama
भिलाई. सिल्वर स्क्रीन पर चमकने वाले सितारों को रंगमंच की दुनिया में गढऩे वाला एक शख्स ऐसा भी है, जो परदे के पीछे भले ही गुमनाम है, पर असल जिंदगी के हर किरदार को बखूबी जीते हैं। प्रदेश के ऐसे ही व्यक्तित्व डॉ. योगेंद्र चौबे जिनसे आज हम आपको रूबरू करा रहे हैं। जिन्होंने भिलाई प्रवास के दौरान अपने अनुभवों को पत्रिका से साझा किया। मूलत: रायगढ़ के डॉ. योगेंद्र चौबे भारतीय संस्कृति मंत्रालय विशेषज्ञ समिति के सदस्य, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा एकेडमिक काउंसिल के मेंबर व अंतरराष्ट्रीय रंगमंच महोत्सव समिति के सदस्य हैं। इसके अलावा कला क्षेत्र से जुड़े देश के कई अग्रणी संस्थाओं में इनकी अहम भूमिका है।
रायगढ़ के अलावा इनका योगदान मिनी इंडिया के कलाकारों को भी गढऩे में रहा है। वे भावी पीढ़ी को थियेटर से जोडऩे लगातार प्रयास कर रहे हैं। जिसके तहत थियेटर की दुनिया में कभी नाम कमाने वाले भिलाई को फिर से उस बुलंदी में पहुंचाने नए चेहरे तलाश रहे हैं। उन्हें लगता है कि भिलाई में रंगमंच से जुड़े कलाकारों की कमी नहीं है। यहां के कलाकारों ने छत्तीसगढ़ को विश्वस्तरीय पहचान दिलाई है। अगर हम छत्तीसगढ़ी युवाओं को सहीं मार्गदर्शन व मंच दें तो निश्चित तौर पर वे बेहतर मुकाम हासिल कर सकते हैं।
छत्तीसगढ़ की लोककला को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करना है लक्ष्य
डॉ. योगेंद्र ने बताया कि छत्तीसगढ़ की लोक कला राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत बनाने के लिए प्रदेश के कला से जुड़े युवाओं को प्रशिक्षण दे रहे हैं, जिससे कि स्थानीय कलाकारों की गुणवत्ता भी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो, और हमारे संस्कृति रंगमंच पर बेहतर ढंग से खड़ा कर सकें। उन्होंने बताया कि २००८ में उनकी छत्तीसगढ़ी फिल्म रानीदाई फिल्म रिलीज हुई। इसके बाद बाबा पाखंडी, मधुशाला हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला पर नाटक किया। इसी क्रम में ग्लोबल राजा, उजबक राज, तीन डकैत खैरागढ़ में किया था। ये सभी फिल्म नेशनल फिल्म फेस्ट में गई, जिन्हें अवॉर्ड भी मिले।
२०१२-१३ में छत्तीसगढ़ी फिल्म गांजे की कली बनाई जो छग की पहली ऐसी फिल्म बनी जो इंटरनेशनल फिल्मफेस्ट तक पहुंची साथ ही पुरस्कार प्राप्त किया। इन फिल्मों में छत्तीसगढ़ की संस्कृति व यहां के युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। अभी हाल में आई भुलन इंटरनेशनल फिल्म फेस्ट कोलकाता में गई। जिसे भी राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया। उन्होंने बताया कि इप्टा थिएटर से जुड़े रहे। १९९९ में एनएसडी में प्रवेश लेना चाहा लेकिन वे असफल रहे। इस दौरान उन्हे अजय आठली, अरूण पांडेय, संजय उपाध्याय जैसे देश के जाने-माने कलाकारों के साथ काम करने मौका मिला। २००२ में प्रयास के बाद देश के ८० लोगों और छत्तीसगढ़ के प्रथम व्यक्ति के रूप में एनएसडी में चयनित हुए।
कला जगत में उनके योगदान के कारण उन्हें इंदिरा कला संगीत विवि खैरागढ़ में फाउंडर फैकल्टी के रूप में काम करने का मौका मिला। इसके बाद राजा मानसिंह तोमर कला एवं संगीत विवि ग्वालियर में एसोसिएट प्रोफेसर व प्रमुख जिम्मेदारी दी गई। इनके मार्ग दर्शन में छग के कई विद्यार्थी आज बॉलीवुड व कला से जुड़े अन्य क्षेत्रों में अपना अहम योगदान दे रहे हैं। पानसिंह तोमर फिल्म में अहम भूमिका निभाने वाले स्वप्रिल इनके छात्र रह चुके हैं। वहीं मोहन सागर एनएचडी में प्रशिक्षण लिया।
राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विवि ग्वालियर में एसोशिएट प्रोफेसर डॉ. चौबे प्रति वर्ष राष्ट्रीय फिल्म फेस्ट का आयोजन कराते हैं। इसमें बॉलीवुड के अधिकांश रंगमंच से जुड़े कलाकार शिरकत करते हैं। साथ ही देशभर से विभिन्न विधाओं के कलाप्रेमी इसमें हिस्सा लेते हैं। इसमें प्रमुख रूप से छत्तीसगढ़ी संस्कृति को प्राथमिकता दी जा रही है। इसकी प्रसिद्धी को देखते हुए वे छत्तीसगढ़ में फिल्म फेस्ट के माध्यम से प्रदेश के युवाओं को बेहतर मंच देने की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने कला के क्षेत्र में प्रशिक्षण ले रहे व इसमें अपना कॅरियर बनाने वाले युवाओं को सेमिनार के माध्यम से एक बेहतर गाइडेंस दे रहे हैं।

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