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आचार्य ने कहा कि दो तरह की दृष्टि होती है एक दिमाग की दृष्टि दूसरी आंख की दृष्टि। दिमाग की दृष्टि अन्तंरग की ओर ले जाती है आत्मा की ओर ले जाती है। आंख की दृष्टि बाहरी पदार्थ मोह, माया, कषाय, राग, द्वेष की भावना पैदा करती है। ऑख की दृष्टि मिथ्यात्व की ओर ले जाती है, दिमाग की दृष्टि सही सोच पैदा करती है। जैनी लोग बुद्धिमान समझदार होते हैं, वे पागल नहीं होते। जो पागल होते हैं वे जैनी नही हैं ।
आचार्य ने कहा कि दो तरह की दृष्टि होती है एक दिमाग की दृष्टि दूसरी आंख की दृष्टि। दिमाग की दृष्टि अन्तंरग की ओर ले जाती है आत्मा की ओर ले जाती है। आंख की दृष्टि बाहरी पदार्थ मोह, माया, कषाय, राग, द्वेष की भावना पैदा करती है। ऑख की दृष्टि मिथ्यात्व की ओर ले जाती है, दिमाग की दृष्टि सही सोच पैदा करती है। जैनी लोग बुद्धिमान समझदार होते हैं, वे पागल नहीं होते। जो पागल होते हैं वे जैनी नही हैं ।
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हम नाम के जैनी नहीं काम के जैनी बनें। उन्होंने कहाकि नाम से कोई महान नहीं बनता। नाम के साथ गुण होने से व्यक्ति महान व पूज्य होता है, कोई भी पत्थर भगवान नहीं होता है गुणों से भगवान होता है। पत्थर में ईश्वर के गुण विद्यमान किए जाते हैं तब वह पूज्य होपाता है अन्य किसी पत्थर को पूजा नहीं जाता। कपड़ों को उतार देने से कोई मुनि नहीं बनता जो सही तरीके से रत्रय की प्राप्ति कर लेता है वही मुनि हो पाता है । यह भी पढ़ें