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भोपाल

व्यवहार और अव्यवस्थाओं से तंग 760 बच्चे बगैर इलाज के हो रहे गायब

हमीदिया के एसएनसीयू से 760 नवजातों का बीच में छूटा इलाज

भोपालFeb 12, 2019 / 01:22 am

Sumeet Pandey

hamidia hospital

व्यवहार और अव्यवस्थाओं से तंग 760 बच्चे बगैर इलाज के हो रहे गायब

प्रवीण श्रीवास्तव, भोपाल . हमीदिया अस्पताल अव्यवस्थाएं, उपकरणों की कमी यहां तक कि जूनियर डॉक्टरों का व्यवहार मरीजों को अस्पताल छोडऩे के लिए मजबूर कर रहा है। सिर्फ पीडियाट्रिक विभाग में ही बीते साल 760 बच्चे बीच इलाज से गायब हो गए। परिजन डॉक्टरों को बिना बताए ही बच्चों को ले जा रहे हैं। यह खुलासा कमला नेहरू अस्पताल स्थित हमीदिया के शिशु रोग विभाग से मिली जानकारी में हुआ है। इतनी बड़ी संख्या में बच्चों के गायब होने से शिशु रोग विभाग और अस्पताल के आला अधिकारी भी चिंतित हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह से लामा (लीव अगेंस्ट मेडिकल एडवाइस) इलाज बीच में छोडऩे से शिशुओं को गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
हो सकती है गंभीर दिक्कतें
वरिष्ठ शिशु रोग चिकित्सक डॉ. राकेश मिश्रा के मुताबिक एसएनसीयू में आने वाले अधिकतर बच्चे प्री मैच्योर व कम वजन के होते हैं। संक्रमण व अन्य तकलीफ के चलते उन्हें कम से कम 21 दिन तक एंटीबायोटिक देना होता है। इसके अलावा कुछ बच्चों को जन्म के साथ ही सांस लेने में तकलीफ (बर्थ एक्सफेक्सिया) होती है। इन बच्चों का भी लंबे समय तक इलाज चलता है। ऐसे में यदि इलाज बीच में छोड़ दिया जाए तो बच्चों को गंभीर दिक्कतें हो सकती हैं। हमीदिया के शिशु रोग विभाग के डॉक्टरों ने बताया कि प्री मैच्यौर बच्चों को एक किलो 800 ग्राम वजन हो जाने तक रखा जाता है। लेकिन आमतौर पर बच्चे का वजन जैसे ही करीब 1200 या 1400 ग्राम होता है तो परिजन उसे लेकर चले जाते हैं।
परिजनों को लगता है बच्चा ठीक हो गया
विभाग की प्रमुख शशु रोग विशेषज्ञ डॉ. ज्योत्सना श्रीवास्तव बताती हैं कि शुरू में नवजात बच्चों को एसएनसीयू में रखा जाता है। तबीयत में सुधार होने पर उन्हें वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाता है। ऐसे में परिजनों को लगता है कि बच्चा ठीक हो रहा है और हम उसे जबरन यहां रखे हुए हैं। ऐसे में वे बच्चों को लेकर चले जाते हैं। नवजात की जिंदगी खतरे में रहती है। बीच में इलाज छोडऩे से उसका संक्रमण बढ़ सकता है। साथ ही निमोनिया, डायरियां, सांस में तकलीफ, फेफ ड़े में संक्रमण व अन्य बीमारियां हो सकती हैं।
जेपी अस्पताल में हैं बेहतर व्यवस्थाएं
जेपी अस्पताल के एसएनसीयू में भर्ती नवजात की मां के रुकने के लिए अलग से मदर वार्ड बनाया गया है। बच्चा जब तक अस्पताल में रहता है तब तक मां भी यहां रह सकती है, जिससे यहां पर लामा (लीव अगेंस्ट मेडिकल एडवाइस) केस बहुत कम हैं।
यह हैं प्रमुख समस्याएं

परिजनों के रुकने की व्यवस्था नहीं : परिजनों को वार्ड में रहने की अनुमति नहीं रहती है। न ही उनके रहने के लिए अलग से कोई व्ववस्था है। यहां तक नवजात की मां को भी बेड नहीं दिया जाता है। ऐसे में उन्हें अस्तपाल के वार्ड में रुकना पड़ता है। इस दिक्कत के चलते भी वे बच्चे को लेकर चले जाते हैं।
जूनियर डॉक्टरों का व्यवहार : अक्सर अस्पताल में जूनियर डॉक्टरों और परिजनों में बीच विवाद की खबर आती है। बीते साल में तीन बार जूडा और परिजनों में विवाद और मारपीट की स्थिति बनी। सपोर्टिंग स्टाफ का रुखा व्यवहार भी परिजनों को अस्पताल से जाने के लिए मजबूर करता है।
दो वेंटीलेटर खराब : अस्पताल में हर रोज 30 से 35 बच्चों को भर्ती करना पड़ता है। लेकिन व्यवस्थाओं की कमी के चलते कई बार बच्चों को इलाज नहीं मिल पाता। यहां 14 वेंटीलेटर है जिनमें से दो खराब हैं। ऐसे में वेंटीलेटर की कमी के कारण बच्चों को उपयुक्त इलाज नहीं मिलता।
दवाओं की कमी : अस्पताल में कई बार बच्चों के लिए पैरासीटामॉल सिरप तक नहीं मिलता ऐसे में परिजनों से बाहर से दवाएं लाने को कहा जाता है। अस्पताल में आने वाले परिजन अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं जो बाजार से दवाएं नहीं ले पाते।
ऐसे में वे इलाज ही छोड़ देते हैं।


10970 बच्चे भर्ती किए गए बीते साल

30 से 35 बच्चे हर रोज होते हैं भर्ती

760 बच्चे बिना बताए हो गए गायब
14 वेंटीलेटर हैं वार्ड में

30 वेंटीलेटर हो जाएंगे आने वाले दिनों में

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