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भोपाल

एएसआई धो रहे आईपीएस अधिकारियों के मेहमानों के कपड़े और बाथरूम

पुलिस महकमे की अजीबोगरीब दास्तां: लोकलाज के डर से अब खुद को पुलिस अफसर बताने से कतराने लगे जवान

भोपालJan 22, 2024 / 08:06 pm

Roopesh Kumar Mishra

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अधिकारी के घर भोजन पकाता ट्रेड आरक्षक।

मेरी पत्नी और बच्चों से जब लोग पूछते हैं कि आपके पिता- पति क्या करते हैं तो उन्हें अब पुलिस का जवान बताने में शर्म आने लगी है। जब मेरी घर में ये स्थिति है तो समाज किस निगाह से मुझे देखता होगा इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं। एक सितारा लगी पुलिस की वर्दी में फोटो दिखाते हुए ट्रेड आरक्षक से एएसआई बने हजारों पुलिसकर्मियों का का दर्द अब उन्हें समाज में ढंग से जीने नहीं देता है। लोग उन्हें कैसे पुलिसवाले हो कहकर ताने मारने लगे हैं। दरअसल इसके पीछे की वजह है कि प्रदेशभर के 5500 से ज्यादा ट्रेड आरक्षक से जीडी में संविलियन की लड़ाई लड़ रहे हैं। लेकिन उनकी आवाज को अनसुना कर जिम्मेदारों ने उन्हें आईपीएस अधिकारियों के बंगलों में धोबी, कुक और मामली जैसे काम करवाए जा रहे हैं। जबकि बता दें इनमें से कई आरक्षक प्रमोट होकर एएसआई तक बन चुके हैं और उनकी तनख्वाह भी 70000 तक पहुंच चुकी है। इसी दर्द के मारे कुछ एएसआई की जुबानी सुनिए।

केस नं. 01-

72000 तनख्वाह लेकिन कुक के काम में लगे

– ट्रेड आरक्षक बाबूराम (परिवर्तित नाम) साल 1986 में कुक पद पर भर्ती हुए। प्रमोशन मिलते- मिलते साल 2021 में उनकी वर्दी में एक सितारा लग गया और एएसआई बन गए। तनख्वाह भी 72000 रूपए मिलने लगी। लेकिन दर्द इतना की अपनी इस खुशी को समाज के लोगों से साझा करने में भी डरते हैं। बाबूराम ने बताया कि सरकार इनता पैसा और पद देकर रखी है लेकिन हमारा जीवन अधिकारियों और उनके मेहमानों को खाना बनाते- बनाते निकलता जा रहा है।

केस नं. 02

66000 तनख्वाह लेकिन अधिकारियों के मेहमानों के धोते हैं कपड़े

– ट्रेड आरक्षक रामसिंह (परिवर्तित नाम) साल 1992 में धोबी पद पर भर्ती हुए। साल 2022 में प्रमोशन पाकर एएसआई बन गए। तनख्वाह मिलने लगी 66000 लेकिन रामसिंह कहते हैं कि ये सितारा और वर्दी क्या अधिकारियों के और उनके मेहमानों के कपड़े धोने के लिए मिला है। सरकार इतनी नाइसाफी कर रही है। और अधिकारी भी नहीं चाहते की हमारा संविलियन हो क्योंकि यदि हम जनरल ड्यूटी करने लगे तो उनके यहां चाकरी फिर कौन करेगा।

केस नं. 03

67000 तनख्वाह लेकिन करते हैं स्वीपर का काम

– ट्रेड आरक्षक राजमणि (परिवर्तित नाम) साल 1990 में स्वीपर पद पर भर्ती हुए। प्रमोशन पाकर साल 2022में एएसआई बन गए। इनकी तनख्वाह 67000 है। लेकिन ये अफसरों के घर में स्वीपर का काम करते हैं। राजमणि कहते हैं कि सरकार हर जगह आउटसोर्स में लेकर काम करवाती है। लेकिन यहां 67000 तनख्वाह देकर स्वीपर का काम करवा रही है। अब हमको समाज में शर्मिदगी महसूस होने लगी है। हमने तो सालों से वर्दी ही नहीं पहनी।


चुनाव में कम पड़ा अमला तो लगा दी ड्यूटी

ट्रेड आरक्षकों ने बताया कि पुलिस के आला अफसर अपने हिसाब से हमारी ड्यूटी लगाते हैं। वैसे तो जीडी संविलियन से दिक्कत है। लेकिन अब जब चुनाव में अमला कम पड़ा तो हमें सामान्य चुनावी ड्यूटी में फिल्ड में उतार दिया। तो सवाल है कि आप हमें क्या अपना सहूलियत के हिसाब से योग्य मानते हैं।

24 मार्च 2022 को चली नोटशीट फिर रूकी

ट्रेड आरक्षकों के जीडी में लंबे समय से रूकी फाइल 24 मार्च 2022 को चली थी। जब तत्कालनी गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने इंदौर हाईकोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए अपर मुख्य सचिव गृह विभाग से आरक्षक ट्रेडमेन से आरक्षक जीडी के पद पर परिवर्तन की नोटशीट चलाई थी। लेकिन चंद दिनों में ही ये फाइल रूक गई।

कमेटी की रिपोर्ट का पता ही नहीं

साल 2021 में तत्कालीन डीजीपी विवेक जौहरी ने इस मामले को लेकर चार आईपीएस अफसरों की एक कमेटी बनाई थी। लेकिन इस कमेटी की रिपोर्ट का आज तक कोई अतापता नहीं चल पा रहा है। और डीजीपी रिटायर भी हो गए।

 

अभी इस मामले पर कोई अपडेट नहीं

2012 से इनके संविलियन पर रोक लगी है। अभी इस मामले पर कोई अपडेट नहीं है। डीजी स्तर पर कुछ चल रहा हो तो मुझे नहीं मालूम लेकिन हमारे स्तर पर अभी कुछ भी अपडेट नहीं है।

साजिद फरीद शापू, एडीजी, एसएएफ

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