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भोपाल

30 दिन तक चौकी प्रभारी को भी रखा अलर्ट, पुलिस मुखिया ने सिपाही से भी की सीधी बात तब मिली सफलता

– मप्र के 18 अति संवैदनशील, 29 संवैदनशील और 3 उभरते हुए संवैदनशील जिलों में शांति के लिए ऐसे बनाई रणनीति
– 7 नवंबर को ही उतार दिया था बल, कानून व्यवस्था के लिए जारी रहेगा अलर्ट, पुलिस की ड्यूटी यथावत
– 14 जिलों में 27 केस दर्ज किए, इनमें सबसे अधिक 8 केस सोशल मीडिया पर अपवाह फैलाने वाले
– 300 से ज्यादा सोशल मीडिया ग्रुप पर पुलिस, इंटलीजेंस ने रखी निगरानी
– सबसे अधिक बल व फोकस मालवा-निमाड़ और मध्य भारत पर रहा। नक्सल प्रभावित जिलों पर कम ध्यान दिया गया

भोपालNov 12, 2019 / 02:48 pm

Radhyshyam dangi

MP police

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भोपाल। त्योहारों के बीच अयोध्या फैसले को लेकर मप्र पुलिस की 30 दिन की तैयारी ने प्रदेश में शांति व्यवस्था बनाए रखी। 7 अक्टूबर से इंटलीजेंस के इनपुट के आधार पर डीजीपी वीके सिंह ने चौकी प्रभारी तक से सीधा संवाद कर कानून व्यवस्था पर नजर रखी। इसके परिणामस्वरुप मप्र के किसी भी हिस्से से अप्रिय घटना सामने नहीं आई।
जबकि मप्र में सांप्रदायिक लिहाज से 18 जिले अति संवैदनशील, 29 संवैदनशील और 3 उभरते हुए संवैदनशील हैं। इसके बावजूद मप्र में किसी तरह की अप्रिय स्थिति नहीं बनी। इसके पीछे पुलिस की 30 दिन की कसरत है। डीजीपी ने चौकी प्रभारियों तक से सीधी बात कर उन्हें अतिरिक्त सतर्कता बरतने और चौकस रहने के निर्देश दिए हैं।
पुलिस ने 7 अक्टूबर से ही प्रदेशभर में सुरक्षा व्यवस्था की तैयारी कर ली थी। 7 नवंबर को प्रदेशभर में बल तैनात कर दिया गया था। गोपनीय सूचनाओं के आधार पर पल-पल की जानकारी केंद्रीय जांच एजेंसियों और गृह मंत्रालय को दी जा रही थी। वहीं, केंद्रीय एजेंसियों से मिलने वाली जानकारी के आधार पर भी शांति भंग करने वाले लोगों को चिह्नित किया जा रहा था। इसके आधार पर पुलिस ने हर वर्ग पर नजर रखने के लिए एक रणनीति बनाई थी। ताकि कहीं भी कोई चूक न हो पाए।
तीन चरणों में ऐसे बनाई रणनीति

1. तैयारी- फैसले और त्योहार के संयोग को देखते हुए तैयारी 7 अक्टूबर से शुरु कर दी। 40 बिंदुओं की एक लंबी-चौड़ी गोपनीय एडवाइजरी जारी की गई। इसमें चौकी प्रभारी-सिपाही से लेकर एडीजी-आईजी तक को क्या करना है और कैसे नजर रखना है आदि के बारे में समझाईश दी गई। किस पर कैसे नजर रखी जाए ओर कैसे समाधान किया जाए इसका सुझााव दिया गया।
कहा गया कि हर वर्ग, समुदाय, जाति, समाज, धर्म, दल और प्रभावशाली से लेकर अशांति फैलाने वालों के साथ बैठकें की। उन्हें समझाया गया। यानी सोशल पुलिसिंग का तरीका अपनाया। यह कारगर साबित हुआ। बलवा ड्रील और उससे जुड़ी सामग्री निकालकर तैयारी करने को कहा गया। घृणा फैलाने वालों की पहचान की।
2. इंटलीजेंस-समन्वय- इंटलीजेंस के इनपुट और सूचनाओं का समन्वय बनाया गया। हर स्तर विभाग को गोपनीय सूचना के लिए अलर्ट किया गया। वन विभाग सहित राजस्व और कोटवार आदि से

सूचना ली गई। गोपनीय सूचना संकलन में नए सिपाही, कांस्टेबल, एसआई की मदद ली गई। इनसे डीजी-एडीजी स्तर के अधिकारियों ने सीधी बात की। पुराने पुलिस कर्मियों को गोपनीय सूचना से दूर रखा। एक थाना क्षेत्र की दूसरे थाना क्षेत्र के पुलिसकर्मियों से सूचना एकत्र करवाई गई।
इनके आधार पर फिर से पुलिस ने तैयारियां की। सूचना में जिसका नाम सामने आया, उसे बुलाकर बैठक की। समझाया भी और डराया भी। नहीं मानने पर रासुका तक का प्रयोग करने के तरीकों से समझाया। पुलिस की यह तकनीक सबसे सफल रही।
3. क्रियान्वयन- हर स्तर से मिली जानकारी के आधार पर जोनल आईजी को अपने-अपने क्षेत्र में बल तैनात कर अलर्ट जारी किया।
भोपाल, उज्जैन व इंदौर जैसे शहरों में रेपिड एक्शन फोर्स की कंपनियां उतारी। जिलों में तैनात 84 कंपनियों के अलावा 32 अतिरिक्त कंपनिया तैनात की। 2800 नए ट्रैनी जवान उतारे। 250 राजपत्रित अधिकारी उतारे। नक्सल प्रभावित एक दर्जन जिलों पर कम ध्यान दिया गया। सांप्रदायिकता के लिहाज वाले जिलों पर फोकस रखा। सबसे अधिक बल भोपाल, इंदौर, उज्जैन, जबलुपर, बुंदेलखंड, ग्वालियर में भेजा गया।
सीमावर्ती राज्यों-जिलों पर विशेष नजर

मप्र के सीमावर्ती जिले, विशेषकर गुजरात, उप्र व महाराष्ट्र के पुलिस मुखिया और खुफिया एजेंसियों के संपर्क में लगातार मप्र पुलिस बनी रही। सीमावर्ती जिलों के एसपी को सख्त निर्देश दिए गए थे। हर जगह और व्यक्ति पर नजर रखने के लिए सूचना तंत्र का इस्तेमाल किया गया। 300 से ज्यादा सोशल मीडिया ग्रुप पर इंटलीजेंस की नजर थी।
इस दौरान 27 एफआईआर दर्ज की गई। उज्जैन व छतरपुर में 4-4 सबसे अधिक केस दर्ज हुए। टीकमगढ़ में 2 केस। इनमें से 8 केस सोशल मीडिया, 7 केस धारा 144 का उल्लंघन और 12 केस बैंड-डीजे बजाने, पटाखे चलाने, जुलूस निकालने आदि के हैं। कोई भी बड़ा केस नहीं है।
वर्जन
यह टीम वर्क था। इसमें पुलिस के साथ अन्य विभागों की भी मदद ली गई। लंबे समय तक तैयारियां की गई। हर सूचना का रेपरकेशन देखा गया। त्योहार में यदि अप्रिय स्थिति बनती तो कैसे निपटा जाता इसकी तैयारी की। एसपी-आईजी को स्पष्ट निर्देश दिए गए। सीमावर्ती जिलों व राज्यों पर विशेष नजर रखने से शांति कायम रही।
मनोश शर्मा, डीआईजी, कानून-व्यवस्था

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