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भोपाल

तत्वार्थ सूत्र की वाचना कर बच्चे सीख रहे संस्कृति

जैन समाज के बच्चों द्वारा पहली बार की जा रही वाचना…

भोपालSep 24, 2018 / 09:29 pm

Rohit verma

Children learning culture

Children learning culture by reading the formula

भोपाल. राजधानी के जैन मंदिर में पहली बार बच्चों द्वारा तत्वार्थ सूत्र की वाचना की गई। इसका मुख्य उद्देश्य इंग्लिस मीडियम स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों को संस्कृत भाषा के साथ ही उन्हें धर्मगं्रथ्रों की जानकारी देना है। छुल्लक चंद्रदत्त सागर महराज ने बताया कि आज की पीढ़ी लगातार इससे दूर होती जा रही है। बच्चे इंग्लिस मीडियम स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं, जिन्हे वहां न तो धर्म की शिक्षा दी जा रही है और न ही धर्मग्रंथों की।
तत्वार्थ सूत्रों की वाचना कराकर बच्चों को संस्कृति धर्म और धर्मग्रंथों से अवगत कराना है। महराज ने कहा कि जैन दर्शन का प्रमुख ग्रंथ तत्वार्थ सूत्र है। इसका वाचन प्रतिदिन दशलक्षण पर्व में देश के सभी जैन मंदिरों में किया जाता है। अब तक जैनमुनि या समाज के बुजुर्गों द्वारा ही इसकी वाचना की जाती रही है।

्रपहली बार भोपाल के शाहपुरा स्थित पाŸवनाथ मंदिर में दशलक्षण पर्व के दौरान वैज्ञानिक आचार्य निर्भय सागर महाराज के ससंघ सानिध्य में आठ वर्ष से 18 वर्ष तक के बच्चों द्वारा तत्वार्थ सूत्र का वाचन किया गया। तत्वार्थ सूत्र में 357 संस्कृति सूत्र हैं। बच्चों ने इन संस्कृति सूत्रों का अभ्यास कर शुद्ध रूप से उच्चारण कर इसकी वाचना की।

इंग्लिस मीडियम की स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों को संस्कृति में शुद्ध रूप से उच्चारण कर तत्वार्थ सूत्र की वाचना करते देख माता-पिता सहित समाज के बुजुर्गों ने उन्हें पुरस्कार देकर उनका मनोबल बढ़ाया। समाज के बुजुर्गों का कहना है कि संस्कृति हमारी भाषा है, इसमें सभी को पढऩा और लिखना आना चाहिए। यह खुशी की बात है कि आचार्य जी के सानिध्य में हमारे बच्चे संस्कृति का ज्ञान ले रहे हैं। इससे ये धर्म समाज और धर्म ग्रंथों के साथ संस्कृत भाषा के बारे में जान सकेंगे।

जैन समाज समिति के संतोष जैन ने कहा कि हमारे बच्चे संस्कृति को आगे बढ़ा रहे हैं, क्योंकि इनसे ही हमारी संस्कृति और धर्म आगे बढ़ेगा। वहीं, समिति के संजय ने बताया कि मुनि शिवदत्त सागर महाराज, हेमन्त सागर महाराज, ऐलक सागर महाराज, सुदत्त सागर महाराज एवं छुल्लक चंद्रदत्त सागर, सिद्ध सागर द्वारा लगातार बच्चों को संस्कृति सहित धर्मग्रंथों की शिक्षा और मार्गदर्शन दिया जा रहा है। प्रमुख शिक्षा आचार्य निर्भय सागर महाराज व मुनि शिवदत्त सागर महाराज द्वारा दी जा रही है। आचार्य जी का कहना है कि विचार करो कि हमें क्या मिला, यह महत्वपूर्ण नहीं है, पर हम आने वाली पीढ़ी को क्या देकर जा रहे हैं, यह बहुत मत्वपूर्ण है। दस लक्षणा पर्व के दौरान आदित्य, अदिति, आकांक्षा, आयुषी, आदिश, सार्थक, अर्थव, अवनि, मुस्कान, अविरल, अनुश्री, कृति, मैत्री, प्रियम, समृद्धि, संस्कृति, निकिता, अरिहन्त, मृदु, अक्षत, चेष्टा, काव्या, आरुषि, खुशबू, स्वप्निल, श्वेता, रिया आदि बच्चों ने संस्कृति में तत्वार्थ सूत्रों का वाचन किया। इसमें महिला मंडल के साथ ही मंदिर समिति के सुहागमल, दीपचन्द, चके्रश, जिनेन्द्र सहित अन्य लोगों ने सहयोग किया।

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