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अतिक्रमण नहीं हटा सकते तो दिन दूर नहीं जब ऑफिसों में होंगे कब्जे

अतिक्रमण नहीं हटा पाने और सीवेज डिस्चार्ज नहीं रुकने पर जताई नाराजगी

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भोपाल. एनजीटी ने आदेश की समय सीमा गुजरने के बावजूद बड़ा तालाब के भदभदा की ओर चिह्नित 227 अतिक्रमण नहीं हट पाने पर नाराजगी जताई है। ट्रिब्यूनल ने जिला प्रशासन और अधिकारियों की अक्षमता पर गंभीर टिप्पणी की है। तीन महीने में तालाब किनारे के अतिक्रमण और जलस्रोतों में नालों का पानी मिलने से रोकने के आदेश दिए हैं। ट्रिब्यूनल ने कहा कलेक्टर सरकारी जमीन और संपत्ति का संरक्षक होता है। अतिक्रमणकारी बेखौफ होकर सरकारी जमीन पर कब्जा कर लें और वह खुद को इस तरह असहाय महसूस करे तो हमें उस दिन का इंतजार करना चाहिए जब बेघरों की भीड़ प्रशासन के अधिकारियों के दफ्तर और आवासों पर रहने के लिए कब्जा कर लेगी और वे कुछ नहीं कर पाएंगे।

एनजीटी के सवाल

अतिक्रमण हटाने संसाधन नहीं मिलना समझ से परे है।

इतनी फोर्स के बाद सरकारी अमला चंद लोगों के विरोध पर बिना कार्रवाई कैसे लौटा।

अतिक्रमण हटाने जैसी कार्रवाई, कानून के पालन के लिए पुलिस बल नहीं मिला। यदि ऐसा है तो डीजीपी को व्यक्तिगत रूप से इसे देखना चाहिए।

निगम कमिश्नर ने अतिक्रमण हटाने के लिए चार माह का समय मांगा था। लेकिन समय गुजर गया कार्रवाई नहीं हुई। इसके लिए सभी अधिकारी जिम्मेदार हैं।

कई बार आदेशफिर भी 18 नाले सीधे मिल रहे तालाब में

एनजीटी ने कहा है कि कहने को तो भोपाल अति विकसित शहर है लेकिन यहां 62 नालों का पानी बिना ट्रीटमेंट के सीधे जलस्रोतों जैसे बड़ा तालाब में मिल रहा था। इससे लाखों लोगों को पेयजल की सप्लाई की जाती है। कई बार आदेश के बावजूद अभी भी 18 नाले सीधे तालाब में मिल रहे हैं। यह दयनीय स्थिति है कि रोज 390 एमएलडी सीवेज निकल रहा है जबकि ट्रीटमेंट की व्यवस्था केवल 130 एमएलडी की है।
अब जिसकी लाठी उसकी भैंस नहींआर्या श्रीवास्तव की याचिका पर सुनवाई करते हुए एनजीटी ने कहा भोपाल झीलों के लिए जाना जाता है लेकिन अब ये खतरे में है। जब कानून नहीं बना था तब प्रशासन जिसकी लाठी उसकी भैंस, सत्ता बंदूक की नली से निकलती है, भीड़तंत्र जैसे सिद्धांतों पर आधारित था। अब विकास, शिक्षा, शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के लिए कलम तलवार से शक्तिशाली, कानून एवं व्यवस्था की समस्या से कानून का शासन छीना नहीं जा सकता है जैसे सिद्धांतों पर आधारित है।