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MP में अब IAS,IPS,IFS अफसरों के खिलाफ जांच के पहले सीएम की मंजूरी आवश्यक

सरकार ने बांधे हाथ: भ्रष्टाचार के मामले में कार्रवाई से पहले जांच एजेंसियों को लेनी होगी अनुमति

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भोपाल। देश की तकरीबन हर सरकार की ओर से यूं भ्रष्टाचार को मिटाने की बात कही जाने के साथ ही कई तमाम दावे भी किए जाते हैं, इसके अलावा जनता को दिखाने के लिए इसे प्राथमिकता में भी रखा जाता है। लेकिन, मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार की जांच के मामले में सरकार ने जांच एजेंसियों के ही हाथ बांध दिए हैं।

नई व्यवस्था के तहत आइएएस, आइपीएस, आइएफएस और वर्ग एक में शामिल अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच अब सीधे जांच एजेंसियां नहीं हो सकेगी। इसके लिए मुख्यमंत्री की अनुमति लेना अनिवार्य किया गया है। सामान्य प्रशासन विभाग ने इस संबंध में आदेश जारी कर दिए हैं। इन अफसरों के खिलाफ जांच के लिए अभी तक जांच एजेंसियां स्वतंत्र थीं।

सामान्य प्रशासन विभाग ने दिसंबर 2020 में भी ऐसा आदेश जारी किया था। तब पत्रिका ने यह मुद्दा उठाया था। लोकायुक्त ने भी इस पर सवाल उठाए थे।

धारा 17-ए जोड़ने से मिला ‘कवच’
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 में धारा 17-ए जोड़ दिए जाने का कारण इन अफसरों को एक सुरक्षा कवच मिल गया है। इसी के तहत जांच शुरू करने के लिए जांच एजेंसियों को संबंधित विभाग से अनुमति लेने कहा गया है। अभी तक यह व्यवस्था राज्य कर्मचारियों के लिए लागू थी। अब नौकरशाहों के मामले में भी यह निर्देश लागू हो गए हैं।

अन्य कर्मचारियों के लिए विभाग
सामान्य प्रशासन द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि धारा 17-ए के अंतर्गत निर्णय लेने संबंधी सक्षम प्राधिकारी अखिल भारतीय सेवा एवं वर्ग-एक के अधिकारियों के मामले में समन्वय में मुख्यमंत्री होंगे। वर्ग-दो, वर्ग-तीन एवं वर्ग-चार के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के मामले में संबंधित प्रशासकीय विभाग होगा।

पूर्व में केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने दिया था झटका-
अफसरों की जांच के लिए केंद्र से मंजूरी की बात पर साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को करारा झटका देते हुए कहा था कि सीबीआई को अदालती निगरानी वाले भ्रष्टाचार के मामलों में वरिष्ठ नौकरशाहों के खिलाफ अभियोजन में केंद्र से इजाजत लेने की जरूरत नहीं।

कोर्ट के इस आदेश से जांच एजेंसी सरकार से पूर्व मंजूरी लिए बिना अधिकारियों के खिलाफ जांच कर सकेगी। जस्टिस आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने केंद्र सरकार की मंजूरी के इंतजार के बगैर कोलगेट घोटाले में कथित रूप से संलिप्त नौकरशाहों के खिलाफ अभियोजन के लिए सीबीआई का मार्ग प्रशस्त कर दिया है।

कोर्ट की दलील: पीठ ने कहा, जब कोई मामला भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत अदालत की निगरानी में हो तो दिल्ली विशेष पुलिस संस्थापन (डीएसपीई) कानून की धारा 6-ए के तहत मंजूरी आवश्यक नहीं है।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार के सभी मामलों में वरिष्ठ नौकरशाहों के खिलाफ जांच के लिए आवश्यक मंजूरी के केंद्र के रुख पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि इस प्रकार का वैधानिक प्रावधान कोलगेट जैसे मामलों में अदालती निगरानी वाली जांच में न्यायिक शक्ति को कम करेगा। पीठ ने केंद्र के इस दावे को दरकिनार कर दिया था कि डीएसपीई कानून की धारा 6 ए के तहत संयुक्त सचिव स्तर के दर्जे या उससे ऊपर के अधिकारियों के खिलाफ जांच के लिए सक्षम प्राधिकरण की मंजूरी की आवश्यकता होती है, चाहे मामला सुप्रीम कोर्ट में ही क्यों न लंबित हो।