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भोपाल

ओले-बारिश का नहीं लग रहा सही अनुमान, महाराष्ट्र से बता रहे मौसम का हाल

52 जिले, 85 लाख किसान और 360 किमी दूर विदर्भ से बताया जा रहा प्रदेश के मौसम का हाल…

भोपालDec 29, 2021 / 09:28 pm

राजीव जैन

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राजीव जैन

भोपाल. प्रदेश की 80 फीसदी जनसंख्या खेती-किसानी से जुड़ी है, लेकिन मौसम विभाग और ग्रामीण मौसम केंद्र में पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने से प्रदेश के 85 लाख किसानों तक मौसम की सही जानकारी नहीं पहुंच रही है। प्रदेश में मौसम का अपना रीजनल केंद्र भी नहीं है। मध्य भारत में होने के नाते मध्यप्रदेश के गठन से पहले नागपुर में रीजनल मेट्रोलॉजिकल सेंटर था पर नया प्रदेश बनने के 65 साल बाद भी प्रदेश का अलग सेंटर नहीं बन पाया। देश के केंद्र में होने और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के लिए यह जरूरी है। महाराष्ट्र में दो प्रादेशिक केंद्र मुंबई और नागपुर हैं, वहीं मध्यप्रदेश और पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में एक भी नहीं है। प्रदेश में रीजनल सेंटर स्थापित करने के लिए राज्य-केंद्र सरकार या पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस ढिलाई का नतीजा प्रदेश को भुगतना पड़ रहा है। मौसम केंद्र का विकास नहीं होने और सुविधाओं में वृद्धि नहीं होने से समय के साथ और दक्षता से पूर्वानुमान नहीं मिलने का खमियाजा किसानों को असमय बारिश और ओले जैसी प्राकृतिक आपदा के जरिए उठाना पड़ रहा है।

 

 

 

अभी प्रदेश में ऐसी है मौसम नापने की व्यवस्था
प्रदेश के 11 जिलों भोपाल, खजुराहो, गुना, ग्वालियर, होशंगाबाद, इंदौर, जबलपुर, सागर, सतना, मंडला और छिंदवाड़ा में विभाग की अपनी मौसम ऑब्जर्वेटरी हैं। इसके अलावा कृषि की उपयोगिता के हिसाब से प्रदेश को नौ हिस्सों में बांट रखा है। इनमें ग्रामीण कृषि मौसम सेवा इकाई के जरिए ग्वालियर और जबलपुर कृषि विश्वविद्यालय के अधीन अन्य जिलों का तापमान और किसानों को पूर्वानुमान मिलता है। राज्य सरकार का सीधा दखल न होने से रिक्त पद इतने ज्यादा हैं कि इंदौर और खरगोन जैसे बड़े सेंटर खाली पड़े हैं। इससे मालवा और निमाड़ के किसानों के लिए पूर्वानुमान तक जारी नहीं हो रहे। सीहोर जैसे एक सेंटर के पास छह जिलों का काम है। यही हाल नर्मदापुरम संभाग का है, यहां पवारखेड़ा में एक भी व्यक्ति नहीं है।

 

 

 

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इसलिए होना चाहिए अपना रीजनल सेंटर
1. जिस तरह छोटे राज्यों के निर्माण से बेहतर विकास का कॉन्सेप्ट दिया गया ठीक उसी तरह सेंट्रल इंडिया में रीजनल केंद्र बनने से कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को पूर्वानुमान में आसानी होगी। इसका फायदा पड़ोसी राज्यों छत्तीसगढ़, राजस्थान और उत्तरप्रदेश को भी होगा।

2. अभी दूसरे राज्य में रीजनल केंद्र स्थापित होने से राज्य सरकार के साथ सेंटर का समन्वय बेहतर नहीं हो पाता। इसे यूं समझ सकते हैं कि भोपाल के मौसम विज्ञान केन्द्र में 10 करोड़ के डॉप्लर रडार से महज 70 मीटर की दूरी पर 17 मीटर ऊंची ग्रामीण अभियांत्रिकी सेवा (आरइएस) की बिल्डिंग बन गई। इससे रडार से उज्जैन-इंदौर संभाग के दस जिले कट गए। इससे दोनों संभाग की तरफ सक्रिय होने वाले सिस्टम और मौसम की गतिविधियों की इमेज नहीं मिल पा रही है। भोपाल के सबसे नजदीक सीहोर जिले की भी स्पष्ट तस्वीर नहीं आती, इसलिए यहां का पूर्वानुमान गड़बड़ा रहा है। यह कार्य पत्र व्यवहार से ही चलता रहा। रीजनल केंद्र राज्य सरकार से बेहतर समन्वय रखता तो यह नौबत नहीं आती।

3. राजधानी भोपाल मौसम केंद्र है, पर इससे सभी प्रशासनिक अनुमतियां रीजनल सेंटर नागपुर से लेनी होती हैं। इसमें भी 90 लोगों के स्टाफ के मुकाबले 30 लोग ही हैं। इसी तरह के हालात प्रदेश की 11 विभागीय ऑब्जवेटरी और 35 अस्थाई ऑब्जर्वेटरी में है। 53 ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन हैं, जिनमें से अभी रखरखाव के अभाव में सिर्फ सात ही चालू हैं।

 

 

 

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हर उपखंड पर तीन जगह से लिया जाए डेटा
प्रदेश में सही पूर्वानुमान के लिए एक उपखंड से तीन जगह से डेटा लिया जाए तो सटीक पूर्वानुमान जारी हो सकता है। यह भी बीस से तीस साल का हो तब हम घोषणा कर सकते हैं। अब भी छोटी या कामचलाऊ व्यवस्था बनाएं तब भी इस काम में वर्षों लगेंगे। अभी तो प्रदेश में 373 ब्लॉक ऑब्जरेवेटरी ही नहीं हैं।

 

 

 

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एक पूर्वानुमान से हो सकती है बड़ी बचत
ग्रामीण मौसम केंद्र सीहोर की ओर से 28 दिसंबर को बारिश होने का पूर्वानुमान तीन दिन पहले जारी किया गया। अगर इसे सिर्फ सीहोर जिले के अनुसार ही समझने का प्रयास करें तो रबी सीजन में तीन लाख 40 हजार हेक्टेयर में बोवनी की गई है, जिसमें अकेले 3 लाख 20 हजार हेक्टेयर में गेहूं की बोवनी है, जिसे सबसे ज्यादा पानी की जरूरत रहती है। मौसम विशेषज्ञों ने बारिश की संभावना को देखते हुए रबी फसल की सिंचाई न करने का पूर्वानुमान जारी किया। आर ए के कृषि महाविद्यालय सीहोर में पदस्थ तकनीकी अधिकारी डॉ सत्येन्द्र सिंह तोमर का कहना है कि सिंचाई पर खर्च होने वाले 1500 रुपए प्रति हेक्टेयर के खर्चे को कम करें तो 48 करोड रुपए की बचत होती। इसके साथ अतिरिक्त पानी से फसल खराब होने का डर भी खत्म होगा। विशेषज्ञों की मानें तो ऐसे सटीक पूर्वानुमान से एक फसल चक्र में ही प्रदेश में अरबों रुपए की बचत हो सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब अन्य क्षेत्रों में जब शत प्रतिशत क्षमताओं का उपयोग हो चुका है ऐसे में अब भी खेती में पांच फीसदी भी क्षमताओं का भी उपयोग नहीं किया है।

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