
भोपाल. मैं आ गया हूं, हर साल की तरह इस बार भी । दक्षिण पश्चिमी हवाओं के रथ पर सवार होकर आया हूं। मैं हर कहीं हूं... बूंदों में, बादलों में, बौछारों में, गलियों में, चौबारों पे हर ओर आपको दिखेगी मेरी झलक। मैं हूं आपका अपना मानसून।
मैं जी भरकर बरसना चाहता हूं, मगर जो देख रहा हूं उससे तनिक निराश हूं, उदास हूं। अपने आसमां से मध्यप्रदेश की धरती को निहारता हूं तो शहर, कस्बे, गांव हर कहीं मुझे सीमेंट का जंगल दिखता है। यही वजह है कि थोड़ा ठिठक रहा हूं। मेरा आचमन करने वाली धरती पर सडक़ों, इमारतों, मकानों का जंजाल तो खूब दिखता है, मगर हरियाली तो मानो लुट सी गई है। सूबे के असंख्य इलाके बयां कर रहे हैं कि यहां इंसानों की हरियाली से भयंकर जंग चल रही है। मशीनों की मदद से इंसान हरियाली को नेस्तनाबूत कर रहा है। मुझे तो लगता है, जहां आबादी है, वहां हरियाली की बर्बादी है।
सवाल यह है कि मैं बरसू कैसे, मेरा आचमन करने वाली धरती और पेड़ दिख ही नहीं रहे। सब कुछ सीमेंट ने ढंक सा दिया है। मगर मन में ख्याल आता है, मनुष्यों ने धरती के प्रति अपना धर्म त्याग दिया मगर मैं तो अधर्मी नहीं हो सकता। बरसना मेरा धर्म, मेरा कर्म है। मैं अपने धर्म मार्ग से सूबे की सूरत बदल सकता हूं। बस लोग थोड़ा मेरा साथ दे दे, थोड़ा मेरा साथ ले ले। करना इतना ही है कि हर शख्स एक पौधा ले और उसे जमीन से जोड़ दे, बाकी मुझ पर छोड़ दे। इस मौसम में मैं उसे सींचूंगा और जड़ों का धरती से एकाकार करवा दूंगा। आप बस उस पौधे को मेरे जाने के बाद दोबारा आने तक अपने बच्चे की तरह ही पालते-पोसते रहना। जब वह बड़ा होगा तो सूरज के ताप से लड़ लेगा। कालांतर में वह बड़ा होगा तो छांव देगा, फल देगा और परिंदों को घर भी देगा। फिर आप देखना, मैं आसमान में कभी ठिठकूंगा नहीं, जैसे ही मुझे ‘हरित प्रदेश’ दिखेगा, मैं इसी आसमां में रुक जाऊंगा और खूब लाड़ लड़ाऊंगा, बौछारें करूंगा, बारिशें लाऊंगा।
मैं आपकी हर मांग पूरी करूंगा, आप बस मेरी एक छोटी सी बात मान लें। पौधा लें, पूरी मन से उसे रोपें। आओ... हम सब संकल्प लें कि धर्म स्थलों, बगीचों, स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों, धर्मशालाओं, मैरिज गार्डनों जैसे तमाम परिसरों और सडक़ों कि नारों को हरियाली से खुशहाल बना देंगे। तो तैयार हो ना आप..।
Published on:
28 Jun 2023 09:52 pm
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