मध्यप्रदेश सरकार ने करीब ढाई सौ करोड़ रुपए खर्च कर सन 2003 में पार्क तैयार कर लिया। फिर गुजरात और केंद्र सरकार से शेर मांगे लेकिन मामला कागजों में अटक गया। इसके बाद आरटीआइ एक्टिविस्ट अजय दुबे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
कोर्ट ने अप्रेल 2013 में केंद्र सरकार को छह महीने में गिर से शेरों को कूनो भेजने के आदेश दिए। जब 2014 में भी शेर नहीं पहुंचे तो दुबे ने अवमानना याचिका लगाई। आखिर मार्च 2018 में केंद्र के वकील ने कोर्ट को बताया कि कूनो में जल्द शेर भेजे जा रहे हैं और याचिका समाप्त हो गई।
सीसीएफ उत्तम शर्मा कहते हैं कूनो में सिंह परियोजना बंद नहीं हुई। सहमति बनी तो भविष्य में शेर लाए जा सकते हैं। यदि मप्र को शेर मिले तो दुनिया में हम अकेले प्रदेश होंगे जहां बाघ, तेंदुआ, चीता व शेर होंगे।
ऐसे अटका मामला
कूनो में छह माह में शेर बसाने शीर्ष कोर्ट ने दिसंबर 2016 में एक्सपर्ट कमेटी गठित की। कमेटी ने पार्क का दौरा किया। बैठक की। फिर दूसरी बैठक नहीं हुई। गुजरात सरकार ने भी अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ के मापदंडों को ढाल बनाया। संघ के 35 मापदंड हैं। इन्हें पूरा करने पर शेरों को दूसरे स्थान पर बसाया जा सकता है। उनमें से कुछ काम मप्र ने पूरे किए लेकिन फिर मामला अधर में रहा। 1992 में केंद्र सरकार ने दी थी सिंह परियोजना की मंजूरी फिर मामलों कागजों में सिमट गया।