छतरपुर जिले में 13 साल के बच्चे के प्रकरण ने सभी को झंकझोर दिया। यह बच्चा अपनी मां के मोबाइल से रोज गेम खेलता था। धीरे-धीरे गेम में लाइफ स्टाइल और लाइफ लाइन के बदले मां के खाते से पैसा देने लगा। वो अब तक 40 हजार रुपए गंवा चुका था। जब उसे माता-पिता का डर लगा तो वो फांसी के फंदे पर झूल गया। उसने हिन्दी और अंग्रेजी में सोसाइट नोट भी लिखा।
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बच्चों के साथ रखें सहज संवाद शैली
राजधानी के मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि एक बच्चे का आत्मघाती घटना सामने आई है, जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। यदि इसकी गहराई में जाएं तो माता-पिता की बच्चों के साथ संवाद शैली है, जिस पर ध्यान देने की जरूरत है।
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मनोचिकित्सक डॉ. त्रिवेदी कहते हैं कि यह एक केस है, जो यह दर्शाता है कि हमारी पैरेंटिंग में सहज व्यवहार नहीं होकर डर का माहौल है। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार करें कि बच्चा किसी भी गलती में अपने माता-पिता से बात करने में संकोच न करें। बच्चे के भीतर कोई आशंकाएं न आए और वो अपनी समस्या सहजता से व्यक्त कर सके। यदि हम ऐसा वातावरण देंगे तो सारी समस्याएं हल हो सकती हैं।
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डॉ. त्रिवेदी कहते हैं कि हम लोग मनोचिकित्सक के रूप में देखते हैं कि पैरेंटिंग के बीच दूरियां होती हैं, उनके बीच संवाद नहीं रहता है। हमारे यहां कड़क पैरेंटिंग को यह दर्शाया जाता है कि माता-पिता कम बात करेंगे तो बच्चों पर ज्यादा असर रहेगा और वे अनुशासित रहेंगे, लेकिन ऐसा नहीं है।
डॉ. सत्यकांत कहते हैं कि बच्चों के साथ माता-पिता जितना अच्छा संवाद करेंगे बच्चे में उतना ही अच्छा व्यक्तित्व बनेगा। यदि बच्चे ने कोई गलती की है तो उसे अपनी बात बताने के लिए किसी खतरे की आशंका नहीं होना चाहिए। इसलिए बच्चों को ऐसा माहौल देना चाहिए कि वो असहजता से अपनी बात रख सके।
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आत्महत्या रोकथाम नीति की जरूरत
डॉ. त्रिवेदी ने पत्रिका से कहा कि देश में आत्महत्या रोकथाम नीति की जरूरत है। इसके बाद हम इसे समझ पाएंगे कि यह कितनी बड़ी समस्या है। इसे रोकना कितना जरूरी है। नीति लाने से लोगों के मन में, शिक्षाविदों और समाजशास्त्रियों के मन में गंभीरता आएगी। पूरा प्रशासन गंभीर होगा कि हमें इस पर काम करना होगा।
मनोचिकित्सक डॉ. त्रिवेदी कहते हैं कि आत्महत्याओं से जुड़ी घटनाएं किसी एक कारण से नहीं होती है, यह बायो साइको सोशल फैक्टर है। व्यक्ति की पर्सनालिटी, उसका टेंपरामेंट कैसा है, आर्थिक स्थिति, उसकी रिलेशनशिप, संवादशैली, उसका सपोर्ट सिस्टम कैसा है। जब हम समग्र रूप से इन बातों पर कार्य करेंगे तो देश में ऐसी घटनाओं में कमी आ सकती है। हमें परिवार और समाज में स्वच्छ वातावरण बनाना चाहिए, जिससे ऐसी घटनाएं न हों।