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MP: इन छोटे-छोटे कारणों से हर साल 50 हजार बच्चे छोड़ देते हैं स्कूल

कबाड़ बीनने वाले, प्लेटफार्म पर रहने वाले अथवा बेसहारा बच्चों के लिए शिक्षा विभाग के पास कोई पुख्ता योजना नहीं है। लगभग 5 साल पहले सरकार ने प्लेटफार्म योजना शुरू की थी। 

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Anwar Khan

Jan 17, 2017

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भोपाल। राइट टू एजूकेशन एक्ट हो या फिर मध्यप्रदेश सरकार की तमाम योजनाएं। बच्चों का स्कूल में मन नहीं लग रहा। वे एक कक्षा पास करने के बाद दूसरी में जाने की इच्छा भी नहीं रखते। ये चौंकाने वाली रिपोर्ट मध्यप्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग के एजूकेशन पोर्टल में अपलोड की गई है। इसमें बताया गया है कि छोटे-छोटे कारणों के चलते बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं। ये आंकड़ा छोटा नहीं है, बल्कि हर साल एमपी के 50 हजार बच्चे स्कूल छोड़ रहे हैं। ये रिपोर्ट मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की टेंशन बढ़ाने के लिए काफी है। आइए जानते हैं इस रिपोर्ट से जुड़ी और भी कुछ खास बातें....




रिपोर्ट में चौंकाने वाले बिंदु
- मध्यप्रदेश में अभी भी लाखों बच्चे शिक्षा से वंचित हैं।
- 50 हजार बच्चे ऐसे हैं जो हर साल मामूली कारणों के चलते स्कूल छोड़ देते हैं।
- इन कारणों में गरीबी और 6 से 14 साल तक के बच्चों पर ही उनके छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी का होना है।
- बहुविकलांग बच्चे भी इसमें शामिल हैं। वहीं सरकारी स्कूलों में दर्ज होने वाले बच्चों का ड्रॉप आउट परसेंटेज 30-40 प्रतिशत है।
- खासकर कक्षा 8वीं पास करने वाले 40 प्रतिशत बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं।
- जो बच्चे भोपाल के बड़े या मॉडल स्कूल्स में एडमिशन का सपना देखते हैं और सपना पूरा नहीं होता तो वे स्कूल छोड़ देते हैं।




समग्र आईडी, स्कूल आने का रिकार्ड नहीं
एमपी में बच्चों को ट्रैक करने के लिए सरकार ने समग्र आईडी बना दी है। कहने के लिए इसके तहत बच्चे के जन्म से लेकर उसके विद्यालय में दर्ज होने एवं उसकी अगली कक्षाओं में पहुंचने की स्थिति को दर्ज किया जाता है, लेकिन वास्तव में बच्चे विद्यालयों में पहुंच रहे हैं। इसका कोई पुख्ता रिकार्ड स्कूलों के पास नहीं है।




बेसहारा बच्चों का कोई हिसाब ही नहीं
कबाड़ बीनने वाले, प्लेटफार्म पर रहने वाले अथवा बेसहारा बच्चों के लिए शिक्षा विभाग के पास कोई पुख्ता योजना नहीं है। लगभग 5 साल पहले सरकार ने प्लेटफार्म योजना शुरू की थी। बाद में इसे बंद कर ब्रिज कोर्स योजना के तहत आवासीय विद्यालयों में बदल दिया गया, लेकिन इन स्कूलों में गरीब, बेसहारा बच्चे नहीं पहुंच सके।




इनका कहना है...
विद्यालय में पढऩे के बाद हमें इस बात की भी जरूरत नहीं महसूस होती कि हम एक्स्ट्रा क्लास लें। गर्व है कि सुपर 100 के स्टूडेंट भी इसी विद्यालय में पढ़ते हैं।
- कृति अतुलकर, छात्रा


- बोर्ड की मेरिट लिस्ट में इस स्कूल के बच्चों का नाम रहता है। इसके साथ ही बात चाहे एक्स्ट्रा केरिकुलम एक्टिविटी की हो यहां के छात्र हमेशा अव्वल रहते हैं।
- विनय खंडूरी, छात्र उत्कृष्ट विद्यालय

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