-पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्र्ट ओबीसी वर्ग को आरक्षण का उचित प्रतिशत दिलाने की दिशा में केवल एक कदम है। वर्तमान स्वरूप में इस रिपोर्ट की उपयोगिता नहीं है।
-यह आग्रह किया गया कि कुछ निकायों में ओबीसी आबादी 50 फीसदी से अधिक है। यह तर्क संवैधानिक व्यवस्था की अवहेलना का आधार नहीं हो सकता। राजनीतिक दल ओबीसी वर्ग के उम्मीदवारों को नामित करने के लिए स्वतंत्र हैं।
-राज्य चुनाव आयोग को और इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है। बिना किसी देरी के चुनाव कार्यक्रम अधिसूचित किए जाएं।
-मप्र राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से दिए गए तर्क, कि कुछ रिट याचिकाएं उच्च न्यायालय में लंबित हैं, जिनमें अंतरिम आदेश भी जारी किए गए हैं। यदि सिविल या उच्च न्यायालय द्वारा पारित कोई आदेश सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के विरोध में है तो उन्हें इस आदेश के अनुसार अधिक्रमित माना जाए और इस न्यायालय की अनुमति के बगैर कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए।
-राज्य सरकार द्वारा 2022 के संशोधन अधिनियम के अनुसान परिसीमन नहीं किया या ओबीसी वर्ग को आरक्षण के लिए ट्रिपल टेस्ट की अनिवार्यता पूरी नहीं की तो राज्य चुनाव आयोग स्थानीय निकायों के आगामी चुनावों में भी लागू करेगा।