आखिर में डॉक्टरों की मेहनत रंग लाई। मरीज के हौसले ने नामुमकिन लग रही जंग जीत ली। 100 फीसदी सक्रमण को 100 फीसदी मात दे दी। ये कहानी है मौत के मुंह में से वापस आने वाले चेतन सिंह ठाकुर (chetal singh thakur) की। ढाई माह के संघर्ष के बाद आज चेतन अपने परिवार के साथ घर पर हैं।
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वो खौफनाक दौर…डॉक्टरों ने कहा-लखनऊ या चंडीगढ़ ले जाओ
मैं चेतन सिंह ठाकुर। झांसी के पास बबीना (यूपी) में पत्नी और दो बच्चियों के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहा था। मैं कैंट में नौकरी करता हूं। पत्नी सरकारी स्कूल में शिक्षिका हैं। उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में पत्नी की ड्यूटी लगी। मैं भी पांच दिन तक पत्नी के साथ बाहर रहा। वापस आने के बाद अप्रेल के पहले सप्ताह में मुझे बुखार आ गया। पहले तो सामान्य थकावट समझकर दरकिनार किया। लेकिन, समस्या बढ़ती गई तो अस्पताल में दिखाया। इस बीच, हालत भी बिगड़ चुकी थी। निजी अस्पताल में भर्ती कराया। यहां सीटी स्कैन करने पर फेफड़े 100 फीसदी संक्रमित मिले। फिर झांसी के आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया गया। आर्मी अस्पताल में हुई जांच में भी संक्रमण 100 फीसदी निकला। सीटी स्कैन की वैल्यू 25 में से 25 थी। इस बीच, और हालत बिगड़ने लगी। ऑक्सीजन का स्तर बढ़ नहीं रहा था। आर्मी अस्पताल के डॉक्टरों ने भी उम्मीद छोड़ दी थी। पीजीआइ लखनऊ या चंडीगढ़ ले जाने की सलाह दी गई। कोरोना संक्रमण चरम पर था, वहां बेड भी उपलब्ध नहीं थे।
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आखिर भोपाल लेकर आए
मैं टूट रहा था। परिवार भी निराशा में था। लग रहा था मैं बचूंगा नहीं। इसी दौरान बड़े भाई विनोद सिंह की बात कैंसर अस्पताल के डॉ. सोमेश माथुर (dr somesh mathur, cancer hospital bhopal) से हुई। तो उन्होंने भोपाल में फेफड़े एवं श्वांस रोग विशेषज्ञ पीएन अग्रवाल (dr pn agrawal) से संपर्क करने को कहा। आखिरकार 17 अप्रेल को परिवार के लोग लाइफ सपोर्ट एम्बुलेंस से मुझे भोपाल ले आए। आखिरकार दो महीने से ज्यादा अस्पताल में रहने के बाद 23 जून को कोरोना को हराकर अस्पताल से बाहर निकल आया। इलाज करने वाले डॉ. पीएन अग्रवाल, आइसीयू इंचार्ज डॉ. मनोज शुक्ला (dr manoj shukla), शिफ्टिंग में मदद करने वाले डॉ. रघुराज पांडे (dr raghuraj pandey) की मेहनत से मेरी जान बची है।
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अब लखनऊ में परिवार के साथ
परिवार एहतियात के तौर पर उन्हें लेकर अस्पताल के नजदीक के होटल में पांच दिनों तक रहा। आखिर में जब परिवार को भरोसा हो गया कि अब चेतन घर पर रह लेंगे तब उन्हें सड़क के रास्ते से लखनऊ रवाना हो गए।
डॉक्टरों का प्रयास रंग लाया
डॉक्टरों का कहना है कि यह हमारे लिए एक चैलेंज था। सौ फीसदी संक्रमण को ठीक करना आसान नहीं था। डॉ. मनोज मिश्रा ने कहा कि यहां चेतन को वेंटीलेटर पर रखा गया। हमें उम्मीद थी कि यह एक महीने तक संघर्ष कर सकें तो बचने की उम्मीद है। 24 घंटे टीम की निगरानी में रखा। तीन से चार एंटीबायटिक दी। मरीज को मोटिवेट किया। आखिर 20 दिन वेंटीलेटर बाद वेंटीलेटर से आइसीयू में ले आए। अब हमें पूरी उम्मीद जाग उठी। आखिर में 23 जून को डिस्चार्ज कर दिया।
बीना और विदिशा में अतिरिक्त सिलेंडर की व्यवस्था की
परिजनों ने झांसी से भोपाल लाने के लिए एम्बुलेंस की व्यवस्था की। इस दौरन तीन जम्बो सिलेंडर रखे, रास्ते में ऑक्सीजन खत्म न हो जाए इसलिए दोस्त रोहित और डॉ. सोमेशन और रघुराज ने बीना और विदिशा में अतिरिक्त ऑक्सीजन सिलेंडर रिजर्व कराए, जिससे भोपाल पहुंचते तक ऑक्सीजन की कमी ना हो।
विशेष उपचार प्लान किया
चेतन को एडमिट करने के बाद से ही विशेष उपचार प्लान तैयार किया, जिसमें मरीज की दवाओं के साथ एक्सरसाइज, काउंसिलिंग और फिजियोथैरेपी प्लान की गई। चेतन के शरीर में प्रोटीन की भारी कमी थी, तो शुरूआत में इम्युनो ग्लोबिन इंजेक्शन दिए गए। स्थिति थोड़ी सुधरी तो डाइट प्लान किया, जिसमें ऐसा ओरल फूड दिया जिसमें प्रोटीन ज्यादा हो। इसे टीपीएन यानि टोटल पेरेंट्रल न्यूट्रिशियन कहते हैं। चेस्ट फिजियोथैरेपी कराई गई जिससे लंग्स जल्दी इंप्रूव हों। साथ ही सबसे जरूरी काम यह किया कि लगातार मरीज की काउंसिलिंग की गई। मनोचिकित्सक का सहारा भी लिया। अब वह पूरी तरह ठीक है।
डॉ. पीएन अग्रवाल, वरिष्ठ श्वांस रोग विशेषज्ञ भोपाल