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संघर्ष की कहानी: सड़क हादसे में छिन गया था माता-पिता का साया, अब UPSC में हासिल की 724 रैंक

सड़क हादसे में माता-पिता को गवाया, कड़े संघर्ष से UPSC में हासिल की 724 रैंक।

भोपालAug 06, 2020 / 06:35 pm

Faiz

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संघर्ष की कहानी: सड़क हादसे में छिन गया था माता-पिता का साया, अब UPSC में हासिल की 724 रैंक

भोपाल/ संघ लोक सेवा आयोग ( UPSC ) 2019 परीक्षा परिणाम घोषित हो चुके हैं। इसमें भोपाल के टी.प्रतीक राव ने 724वीं रैंक हासिल की है। प्राप्तांकों के आधार पर प्रतीक को आईपीएस या आईआरएस मिलने की संभावना है। तीसरे प्रयास में सफलता हासिल करने वाले प्रतीक के पिता टी. धर्माराव मध्य प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी थे। छोटी सी उम्र में ही माता-पिता का साथ छूट गया, जिसके बाद प्रतीक ने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे। आइये जानते हैं किस चुनौतीपूर्ण उतार चढ़ाव में रहते हुए आज उन्होंने ये मुकाम हासिल किया।

 

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[typography_font:14pt;” >पिता हमेशा चाहते थे कि मैं भी सर्विसेज में जाऊं

पापा एमपी कैडर के आईएएस अफसर थे। पिता के जरिये ही मैंने सर्विसेज को काफी करीब से जाना। पापा हमेशा यही कहा करते थे कि, मैं भी सर्विसेज में ही जाऊं, लेकिन उस वक्त मेरा मन कॉर्पोरेट में जाने का था। मां हमेशा कहती थी कि तुम्हारे पिता आईएएस है, तुम नहीं। इसलिए अपनी पहचान खुद बनाओ।

 

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जब उठ गया था माता-पिता का साया

बात 2013 की है, कैट में सिलेक्शन होने के बाद मुझे आईआईएम कोलकाता में प्रवेश मिल गया। इसी खुशी में मम्मी-पापा हमें लेकर छुट्‌टी मनाने लेह-लद्दाख गए थे। वहां से लौटते समय हमारी कार का एक्सिडेंट हो गया। हादसे ने मेरे सिर से माता-पिता की जान चली गई। उस समय मेरा छोटा भाई सिर्फ 14 साल का था। कुछ वक्त बाद जब मैं इस हादसे से उबरा और आईआईएम कोलकाता जाने का समय आया तो भाई का अकेलापन आंखों के आगे मंडराने लगा। फिर ताऊ जी ने छोटे भाई को उपने पास बिशाखापत्तनम बुला लिया। वहां की बदली हुई भाषा और कल्चर उसकी समझ से परे था। मेने उसे हमेशा यही समझाया कि, भगवान उन्हीं लोगों पर हालात डालता है, जो उन्हें मजबूती से झेलने की क्षमता रखते हैं।

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पापा की दी हुई सीख पर चलकर पाया मुकाम

पापा हमेशा कहा करते थे कि, पढ़ाई के मामले में कभी भी पीछे मत देखना, बल्कि हमेशा आगे बढ़ने का ही प्रयास करना। यही बात मैंने छोटे भाई को समझाई कि मैंने एनआईटी से पढ़ाई की है तो तुम्हारा टारगेट भी आईआईटी से नीचे नहीं होना चाहिए। उसने मेरी बात समझी और अब उसने भी आईआईटी कानपुर में एडमिशन पा लिया। आईआईएम की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने एक साल बेंगलुरू में निजी कंपनी में जॉब भी की। यहां अहसास हुआ कि मेरे लिए सर्विसेज ही ज्यादा बेहतर है और फिर पापा का कहना भी तो यही था।

जाॅब छोड़कर एक साल मैने तैयारी की, फिर 2017 में यूपीपीएससी का पहला अटैम्प्ट दिया, लेकिन 30 नंबरों से सिलेक्शन नहीं हो सका। तो 2018 में दूसरे प्रयास में 4 अंकों से रह गया। मैं हर बार इंटरव्यू तक पहुंचा, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। ये पता था कि पहले दिन से ही कुछ हासिल नहीं होगा, लेकिन एक दिन सफलता जरूर मिलेगी। इसी से मुझे हर बार नए सिरे से तैयारी करने का हौसला मिला।

14 से 18 घंटों की पढ़ाई के बजाय सिर्फ 6 से 8 घंटों की पढ़ाई ही पूरे फोकस के साथ की। मैंने करेंट अफेयर्स के नोट खुद ही तैयार किए। मेरे मेंटर रहे आईएएस अफसर पी. नरहरि सर हमेशा मुझे कहते थे, एक असल ऑफिसर वही है, जो रोज किसी ऐसे व्यक्ति से मिलने का प्रयास करे, जिस तक कभी सरकार न पहुंच पाई हो।

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