लोगों को खुशियां देता है कंस का शासन!
11 दिन तक चलने वाला यह नाट्यमंच लोगों के लिए खुशियां भर देता है। इस दौरान महाराजा कंस का शासन होता है वह जनकल्याण के आदेश देते हैं जिनका पालन किया जाता है। पूरे 11 दिन तक मथुरा नगरी में परिवर्तित हो चुके बरगढ़ का आम्रपाली गोपापुर कहलाता है जबकि जीरा नदी को यमुना नदी मान लिया जाता है। धनुयात्रा के पहले दिन कंस की ‘बहन’ देवकी का विवाद महाराज उग्रसेन बसुदेव नामक युवक से करा देते हैं। यह रस्म रामजी मंदिर में संपन्न कराई जाती है। इससे गुस्साया कंस अपने पिता महाराजा उग्रसेन को बंदी बना लेता है और देवकी और बसुदेव को कारागार में डाल देता है। खास बात यह है कि इस नाट्यकला की पटकथा अब तक नहीं लिखी गई है। कृष्ण ने कंस के अत्याचारों से परेशान होकर उनका और उनके शासन का अंत किया था। खास बात यह है कि यहां कंस की हुकूमत तो चलती है पर उसे खलनायक नहीं नायक के रूप में पेश किया जाता है। कंस की हुकूमत का अंत 10 जनवरी को हो जाएगा।
राज्य में जाते हैं महाराज कंस…
महाराजा कंस रोज हाथी की सवारी करके नगर भ्रमण करते हैं। यही नहीं परंपरा के अनुसार जनकल्याण के कार्यों के लिए वह आदेश करते हैं जिनका पालन अक्षरशः किया जाता है। प्रशासन भी मानकर चलता है कि 11 दिन तक कंस का हुकूमत जनहित में चलेगी। उनके दरबार पर प्रशासनिक अधिकारी मंत्री तक आते हैं। मुख्यमंत्री बीजू पटनायक भी जा चुके हैं।
कंस के बुलावे पर आते हैं कलक्टर, मंत्रीगण…
राज्यसभा के सदस्य बीजेडी के लीडर प्रसन्न आचार्य ने धनुयात्रा की लोकप्रियता के कारण इसे राष्ट्रीय त्योहार का दर्जा देने की मांग की है। इसके पीछे यह भी एक कारण बताया जाता है कि कृष्ण और कंस कथा पर आधारित इस नाट्यमंच को विश्व का सबसे बड़ा ओपेन स्टेज का नाटक कहा जाता है। इस दौरान भगवान कृष्ण के कुछ विशेष अध्यायों का चित्रण किया जाता है। इस पूरे एपीसोड में कंस समाज सुधारक की भूमिका में होते हैं। बताते हैं कि कृष्ण लीला की इस कहानी में थोड़ा सा ट्विस्ट है। इसे रोचक बनाने के लिए थोड़ा सा मिर्च मसाला डाला जाता है। कंस के बुलावे पर कलक्टर, मंत्रीगण आते हैं। पिछली बार पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान आए थे उन्हॆं बायोफ्यूल की बाबत जागरूक करने का निर्देश कंस महाराज ने दिया था। बायोफ्यूल पर मंत्री ने कंस को तफसील से बताया था।