इस साइनेसेज में शुद्ध हवा भरी होती है। साइनेसेज में में छिद्र होते हैं जिसे ‘ओस्टियम’ कहते है। इन्हीं ओस्टियम के माध्यम से साइनेसेज की हवा अंदर आती है और बाहर निकलती है। यानी हम सांस लेते हैं। सामान्यरूप से म्यूकस (बलगम) या अन्य गंदगी इन्हीं छिद्रों से प्रतिदिन हर स्वस्थ इंसान में नाक से बाहर निकलती है। अगर इस मेम्ब्रेन के छिद्रों (ओस्टियम) में बाहरी वातावरण जैसे सर्दी, गर्मी, बरसात, उमस और अन्य इन्फेक्शन, और अंदरूनी एलर्जी से सूजन आ जाए और जुकाम बिगड़ जाए तो ‘साइनस/साइनोसाइटिस’ जैसे गंभीर रोग हो जाते हैं। इसे सामान्य भाषा में बिगड़ा हुआ जुकाम कहते हैं।
‘बैलून साइनुप्लास्टी’ सर्जरी उन रोगियों के लिए प्रभावी उपचार है जो साधारण दवाओं से ठीक नहीं हो पाते और साइनुसाइटिस की तकलीफदेह बीमारी से निजात पाना चाहते हैं। इसकी क्रोनिक स्टेज (दीर्घकालिक या जुकाम के बार-बार होना या पुनरावृति की स्थिति) के इलाज के लिए वर्तमान समय में साइनुसाइटिस के 75 प्रतिशत रोगियों का उपचार नई और अधिक प्रभावशाली एंटीबायोटिक, एलर्जी-रोधक औषधियों एवं नाक के स्प्रे के कारण संभव हो गया है। बाकी बचे 25 प्रतिशत रोगियों के उपचार के लिए नई सर्जरी ‘बैलून साइनोप्लास्टी’ कारगर साबित हुई है। जयपुर में भी ये सर्जरी शुरू हो गई है। बैलून साइनुप्लास्टी के दौरान नाक का ना तो कोई टिशू या हड्डी निकाली जाती है, ना ही रक्त ज्यादा बहता है।
प्रमुख लक्षण
चेहरे पर दर्द, दबाव और जकडऩ, नाक से सांस लेने में कठिनई, गंध या स्वाद का बोध न होना, सिर दर्द, नाक से पीला या हरा बलगम निकलना, तथा थकान, दांत में दर्द, सांस में बदबू आदि हैं।