दिमाग में मचती है उथल-पुथल
मानव मस्तिष्क में दो हेमिस्फेयर (गोलार्ध) होते हैं जो एक फीते (कॉर्पस कैलोसम) से जुड़े होते हैं। मस्तिष्क का दाहिना हिस्सा शरीर के बाएं भाग को और बांया हिस्सा शरीर के दाहिने भाग को नियंत्रित करता है। शरीर के सभी अंगों की तरह मस्तिष्क में भी विद्युत प्रवाह होता है। जिन जगहों पर विद्युत प्रवाह असामान्य होता है वहां शॉट सर्किट जैसी स्थिति बनने लग जाती है जो मिर्गी के दौरे की वजह होती हैं। कई बार मस्तिष्क का एक हिस्सा (हेमिस्फेयर) सिकुड़ कर छोटा हो जाता है।
इस स्थिति में व्यक्ति को दिन में १००-200 बार दौरे आते हैं। ऐसे में दिमाग के एक हिस्से को दूसरे से अलग करने की जरूरत पड़ जाती है। यह समस्या मुख्यत: जन्म के बाद से ही बच्चे को होने लगती है। उसे दिमाग के एक हिस्से में दौरे आते हैं। इन दौरों की तीव्रता ५-५० तक हो सकती है और कई बार ये लगातार भी आते रहते हैं।
बीमारी की मुख्य वजह
नवजात शिशु की डिलीवरी उचित तरीके से न होने, बच्चे के दिमाग में ऑक्सीजन सही से न पहुंचने, बचपन में लकवा होने या फिर एंसीफैलाइटिस (दिमाग के ऊत्तकों में वायरल संक्रमण) बीमारी की वजह से दिमाग का एक हिस्सा (दांया/बांया) खराब होने से व्यक्ति को बार-बार दौरे आते हैं।
कम उम्र में रिकवरी जल्द
बार-बार दौरे आने की समस्या में मरीज को नियमित रूप से कई प्रकार की दवाओं को लेते रहना होता है। लेकिन कई बार जब दवाओं से भी ये दौरे आना बंद नहीं होते तो ‘एंडोस्कोपिक हेमिस्फेरोटॉमी’ यानी दूरबीन की सहायता से दिमाग का एक हिस्सा दूसरे हिस्से से अलग कर इलाज किया जाता है।
इसके अलावा मिर्गी का उपचार यदि बचपन में ही हो जाए तो मरीज को आगे चलकर ज्यादा परेशानी नहीं होती क्योंकि पांच वर्ष की उम्र तक दिमाग में काफी लचीलापन रहता है। इसलिए इस उम्र में यदि सर्जरी कर दी जाए तो दिमाग छह महीने में रिकवर होने लगता है और कमजोरी भी दूर हो जाती है। वहीं १२-१३ साल की उम्र के बाद मिर्गी को ठीक होने और कमजोरी दूर होने में काफी समय लगता है।
किन लोगों के लिए जरूरी
जिन मरीजों के इलाज में दो या दो से अधिक दवाओं का इस्तेमाल किया जा रहा हो और यदि इन दवाओं का किसी भी तरह से कोई सकारात्मक असर मरीज पर नहीं पड़ रहा हो, उनके लिए यह सर्जरी डॉक्टर के अनुसार जरूरी हो जाती है।
प्रमुख जांचें
मरीज की एपीलेप्सी जांच के अलावा ईईजी (दिमाग में विद्युत प्रवाह का पता लगाना), ब्लड टेस्ट, दौरों की मुख्य जगह का पता लगाने के लिए पीईटी (पोजीट्रोन एमिशन टोमोग्राफी) और स्पाइनल टेप करवाते हैं।
ऐसे होता है इलाज
सबसे पहले मिर्गी के दौरे की तीव्रता और दौरे कब व कितनी बार आते हैं इसका पता लगाने के लिए वीडियो ईजी जांच की जाती है। इसके बाद ‘एंडोस्कोपिक हेमिस्फेरोटॉमी’ यानी दूरबीन की मदद से खोपड़ी को खोला जाता है और २-४ सेंटीमीटर तक काटा जाता है। इसके बाद दिमाग के एक हिस्से को दूसरे हिस्से से अलग करते हैं। इस दौरान मरीज को एक हफ्ते से लेकर १० दिन तक अस्पताल में रखते हैं और ब्लड लॉस की भरपाई के लिए अतिरिक्त खून चढ़ाया जाता है। इलाज की इस तकनीक से पहले इसके लिए दिमाग में लगभग ६ इंच बड़ा छेद कर दोनों हिस्सों को अलग करते थे। इसके लिए लगभग २० हजार रुपए का खर्च आता है और गरीबी रेखा से नीचे वालों को बीपीएल कार्ड के आधार पर उपचार दिया जाता है।
डॉक्टरी राय
सर्जरी के बाद मरीज के दौरे ८०-९० प्रतिशत कम हो जाते हैं लेकिन कुछ गंभीर मामलों में इन दौरों के वापस आने की आशंका १०-२० फीसदी बनी रहती है। जिसके लिए मरीज के घरवालों को चाहिए कि वे सर्जरी के बाद छह महीने तक उसकी फिजियोथैरेपी जारी रखें और वजन न बढऩे दें।
मिर्गी के दौरों की समस्या बच्चे को जन्म के बाद से ही होने लगती है और उसे दिमाग के एक हिस्से में दौरे आते हैं। मिर्गी को ठीक होने और कमजोरी दूर होने में १२-१३ साल की उम्र के बाद काफी समय लगता है। आपॅरेशन के बाद मरीज के दौरे लगभग ८०-९० प्रतिशत तक कम हो जाते हैं।