जीवनशैली पर पड़ते हैं दुष्प्रभाव
इसके रोगी रोजाना 10 -12 घंटे मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं। इसका असर उनके निजी व सामाजिक जीवन, पढ़ाई, आर्थिक स्थिति व प्रोफेशन पर पड़ता है। स्थिति गंभीर होने पर वह एकांत में रहने लगता है। लगातार मोबाइल स्क्रीन देखने से सिर व गर्दन दर्द और आंखों में ड्रायनेस की समस्या हो जाती है।
इसके रोगी रोजाना 10 -12 घंटे मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं। इसका असर उनके निजी व सामाजिक जीवन, पढ़ाई, आर्थिक स्थिति व प्रोफेशन पर पड़ता है। स्थिति गंभीर होने पर वह एकांत में रहने लगता है। लगातार मोबाइल स्क्रीन देखने से सिर व गर्दन दर्द और आंखों में ड्रायनेस की समस्या हो जाती है।
लक्षण
बार-बार फोन चेक करना, रात में भी उठकर मैसेज देखना, मोबाइल पर ऑनलाइन गेम्स खेलना, इससे दूरी न बना पाना, लोगों से बातचीत कम करना, हमेशा बेचैनी महसूस करना, इंटरनेट के इस्तेमाल का सही समय न बता पाना जैसे लक्षण सायबर एडिक्शन के हैं।
बार-बार फोन चेक करना, रात में भी उठकर मैसेज देखना, मोबाइल पर ऑनलाइन गेम्स खेलना, इससे दूरी न बना पाना, लोगों से बातचीत कम करना, हमेशा बेचैनी महसूस करना, इंटरनेट के इस्तेमाल का सही समय न बता पाना जैसे लक्षण सायबर एडिक्शन के हैं।
कारण
धीरे-धीरे से ऑनलाइन गेम्स में बढ़ती दिलचस्पी व सोशल मीडिया का अधिक इस्तेमाल इसकी वजह है। रोजाना कई बार सेल्फी सोशल मीडिया पर अपलोड करना, लाइक्स व कमेंट्स का इंतजार करना और रिप्लाई न आने पर पहले एंजायटी फिर डिप्रेशन में चले जाना भी इसके कारण हैं।
धीरे-धीरे से ऑनलाइन गेम्स में बढ़ती दिलचस्पी व सोशल मीडिया का अधिक इस्तेमाल इसकी वजह है। रोजाना कई बार सेल्फी सोशल मीडिया पर अपलोड करना, लाइक्स व कमेंट्स का इंतजार करना और रिप्लाई न आने पर पहले एंजायटी फिर डिप्रेशन में चले जाना भी इसके कारण हैं।
इलाज भी है कई
मरीज का रुटीन जानकर काउंसलिंग की जाती है। कुछ मामले इस स्तर पर सुलझ जाते हैं। स्थिति गंभीर होने पर मरीज को भर्ती करते हैं। डिप्रेशन, एंजायटी जैसी समस्या होने पर दवाएं दी जाती हैं। इसके अलावा कॉग्नेटिव बिहेवरल थैरेपी देते हैं। जिसके तहत उसकी दिनचर्या फिक्स की जाती है। जैसे इंटरनेट से दूर रखने के साथ सुबह उठने से लेकर रात के सोने तक का समय फिक्स किया जाता है। इसके अलावा मरीज को लोगों से मिलने-जुलने के लिए प्रेरित किया जाता है ताकि वे व्यस्त रह सकें। ऐसी एक्टिविटीज भी कराई जाती हैं जो उसे पसंद आए। इलाज के बाद जरूरत पड़ने पर ही इंटरनेट यूज करने की सलाह देते हैं।
मरीज का रुटीन जानकर काउंसलिंग की जाती है। कुछ मामले इस स्तर पर सुलझ जाते हैं। स्थिति गंभीर होने पर मरीज को भर्ती करते हैं। डिप्रेशन, एंजायटी जैसी समस्या होने पर दवाएं दी जाती हैं। इसके अलावा कॉग्नेटिव बिहेवरल थैरेपी देते हैं। जिसके तहत उसकी दिनचर्या फिक्स की जाती है। जैसे इंटरनेट से दूर रखने के साथ सुबह उठने से लेकर रात के सोने तक का समय फिक्स किया जाता है। इसके अलावा मरीज को लोगों से मिलने-जुलने के लिए प्रेरित किया जाता है ताकि वे व्यस्त रह सकें। ऐसी एक्टिविटीज भी कराई जाती हैं जो उसे पसंद आए। इलाज के बाद जरूरत पड़ने पर ही इंटरनेट यूज करने की सलाह देते हैं।