10 प्रतिशत रोगियों में इस चिकित्सा से रोग की गंभीरता कम हो जाती है। 12 फीसदी मामलों में मैग्नेट थैरेपी से सर्जरी की आशंका तक घट जाती है। जीभ की जांच जरूरी
मैग्नेट थैरेपी में रोगी की जीभ देखकर इलाज का स्तर तय होता है। जीभ का आगे वाला हिस्सा हृदय, बायां हिस्सा लीवर, दायां भाग गॉलब्लैडर, बीच का भाग पेट, स्प्लीन व पेन्क्रियाज और पिछला भाग ब्लैडर, यूट्रस और किडनी का होता है। इन हिस्सों की आकृति, रंग, इस पर चढ़ी परत, लंबाई, नमी, सूजन, इस पर दांत का निशान आदि देखकर पता लगाते हैं कि शरीर के किस भाग में तकलीफ है। इसी के आधार पर मरीज का इलाज करते हैं।
शरीर में ऊर्जा के असंतुलन से ही विभिन्न रोग पैदा होते हैं। मेग्नेट थैरेपी में विभिन्न अंगों पर मौजूद ऊर्जा मार्गों पर स्थित बिंदुओं पर अलग-अलग आकार के मैग्नेट को कुछ समय के लिए टेप से चिपका देते हैं। इस चुंबकीय प्रभाव से ये बिंदु जागृत हो जाते हैं जिससे ऊर्जा का संचार सुचारू होता है और इम्यूनिटी बढ़ती है। बार-बार इन ऊर्जा बिंदुओं पर मैग्नेट रखने से परेशानी जड़ से खत्म हो सकती है।
कंधे, कोहनी में दर्द व खिंचाव के अलावा सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस, कमर, घुटने, टखना, एड़ी में दर्द, सायटिका, स्लिप डिस्क, सिरदर्द, भूख न लगना, खट्टी डकारें, कब्ज, पाचन संबंधी रोग, थायरॉइड, हाई ब्लड प्रेशर व डायबिटीज जैसे रोगों में काफी फायदा होता है।