फैटी लिवर –
जब लिवर में वसा की मात्रा कम होती है और कोई लक्षण भी नहीं होते तो यह रोग की शुरुआती अवस्था होती है जिसे फैटी लिवर या स्टेएटोसिस कहा जाता है। जंकफूड की अधिकता और शारीरिक गतिविधियों के अभाव से यह समस्या आम हो गई है। विशेषज्ञों के अनुसार यदि व्यक्ति दवा, सही खानपान और व्यायाम को अपनाए तो लिवर छह माह में सामान्य हो जाता है। रोग गंभीर होने पर लिवर ट्रांसप्लांट भी कराना पड़ सकता है।
नॉन एल्कोहॉलिक स्टेएटो हेपेटाइटिस –
फैटी लिवर की समस्या से पीड़ित बहुत कम लोग एनएएसएच से प्रभावित होते हैं। इस रोग में मरीज को पेट के ऊपरी भाग में हल्का दर्द व लिवर में सूजन हो जाती है। सामान्यत: इसके लक्षण सामने नहीं आते और रुटीन टेस्ट से भी इसका पता नहीं चल पाता। इसके लिए विशेषज्ञ कुछ विशेष प्रकार के टेस्ट करवाते हैं।
लिवर का काम –
यह ग्लाइकोजेन को इक्कठा कर इसे ग्लूकोज में तोड़ने के बाद रक्त शिराओं में उस समय प्रवाहित करता है जब शरीर को ऊर्जा की जरूरत होती है।
प्रोटीन और वसा की पाचन प्रक्रिया को आसान बनाता है।
रक्त में थक्के बनाने वाले प्रोटीन का निर्माण।
शराब, ड्रग्स और अन्य दूषित पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने का काम करता है।
भोजन को पचाने के लिए बाइल (पाचक रस) का निर्माण करता है।
हम जो भी खाते व पीते हैं उन्हें लिवर एंजाइम्स द्वारा पचाने के बाद शरीर की मरम्मत के लिए ऊत्तकों तक पहुंचता है।
ध्यान रहे : भारत में होने वाली लिवर की समस्याओं में एनएएफएलडी आम है जिससे देश में 30 से 40 प्रतिशत लोग प्रभावित हैं।
भ्रम न पालें : नॉन एल्कोहॉलिक फैटी लिवर की समस्या शराब से नहीं होती लेकिन इसका सेवन रोग को अधिक गंभीर बना सकता है। इससे लिवर खराब होने की आशंका दोगुनी हो सकती है।
पहचान –
इसकी जांच लिवर फंक्शनिंग टेस्ट (ब्लड टेस्ट) से की जाती है। कई बार टेस्ट रिपोर्ट सामान्य आने पर भी यह बीमारी हो सकती है।
इन्हें है खतरा –
बच्चे हों या वयस्क यदि वे मोटे हैं तो उन्हें लिवर संबंधी समस्या की आशंका रहेगी। धूम्रपान करने वाले, 50 से अधिक आयु के लोग, हाई कोलेस्ट्रॉल और डायबिटीज होने पर भी खतरा होता है।
फाइब्रोसिस –
लिवर रोग से पीड़ित कुछ लोगों में एनएएसएच की समस्या फाइब्रोसिस में तब्दील हो जाती है। इससे लिवर के ऊत्तक प्रभावित होने लगते हैं लेकिन कुछ स्वस्थ ऊत्तक इस अंग को काम करने के लिए मदद करते रहते हैं।
लिवर सिरोसिस –
यह रोग की गंभीर अवस्था होती है जहां पर ऊत्तक क्षतिग्रस्त होने लगते हैं और लिवर कोशिकाआें के गुच्छे बनने लगते हैं। यह समस्या 50 से 60 साल की आयु के बाद होती है। जिन्हें टाइप-२ डायबिटीज होती है उन लोगों में इसका खतरा अधिक होता है।
ऐसे घटाएं वजन –
व्यायाम करें : इससे बचने के लिए व्यायाम करना जरूरी है। इससे लिवर की कोशिकाओं पर जमी अतिरिक्त वसा को हटाने में मदद मिलेगी व स्ट्रोक और हार्ट अटैक का खतरा घटेगा।
धूम्रपान छोड़ें : अगर धूम्रपान की लत है तो इससे तौबा करना ही बेहतर होगा क्योंकि इसे छोड़कर ही स्ट्रोक या हार्ट अटैक के खतरे को कम किया जा सकता है।
उपचार : इसके लिए फिलहाल कोई दवा उपलब्ध नहीं है लेकिन हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज की कुछ दवाएं लिवर के लिए फायदेमंद हो सकती हैं।