यह जड़ी-बूटी हिमालय पर इतनी ऊंचाई पर पाई जाती है, जहां जीवन को बनाए रखना ही अपने आप में एक चुनौती है।वैज्ञानिकों का कहना है कि यह एक चमत्कारी जड़ी-बूटी है, जो इम्यून-सिस्टम को ठीक कर सकती है, और ऊंचाई के वातावरण के हिसाब से शरीर को ढलने में मदद करती है।इसका सबसे बड़ा गुण ये है कि यह रेडियो-एक्टिविटी से भी बचाव करती है। वैज्ञानिकों ने इस जड़ी-बूटी को ‘रोडियोला’ ( rhodiola ) नाम दिया है। रोडियोला ठंडे और ऊंचाई वाले जगह पर पाया जाता है। स्थानीय लोग रोडियोला को ‘सोलो’ कहते हैं और इसकी पत्तियों का सब्जियों में प्रयोग करते हैं।
लेह स्थित डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई एलटीट्यूड रिसर्च (डीआईएचएआर) के शोध से पता चलता है कि रोडियोला का इस्तेमाल कई बीमारियों के इलाज में किया जा सकता है। डीआईएचएआर के निदेशक आर.बी. श्रीवास्तव ने एक मीडिया एजेंसी को बताया, “रोडियोला एक आश्चर्यजनक पौधा है, जो रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाता है, कठिन जलवायु की स्थितियों में शरीर को अनुकूल बनाता है और रेडियो एक्टिविटी से बचाव करता है। इस पौधे में सीकोंडरी मेटाबोलाइट्स और फायटोएक्टिव तत्व पाएं जाते हैं, जो विशिष्ट तत्व हैं।”
श्रीवास्तव ने कहा कि यह जड़ी बूटी बम या बॉयोकेमिकल लड़ाई से पैदा हुए गामा रेडिएशन के प्रभाव को कम करता है। लेह स्थित डीआरडीओ की प्रयोगशाला दुनिया की सबसे ऊंची जगह पर स्थित कृषि-जानवर शोध प्रयोगशाला है। इस प्रयोगशाला में रोडियोला पर एक दशकों से शोध हो रहा है।
श्रीवास्तव ने कहा, “इस पौधे की एडेप्टोजेनिक क्षमता सैनिकों और कम दवाब और कम आक्सीजन वाले वातावरण में अनुकूल होने में मदद कर सकती है, साथ ही इस पौधे में अवसाद-रोधी और भूख बढ़ाने वाला गुण भी है।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि लेह लद्दाख ऐसी धरती है, जहां संजीवनी पाई जाती है। वे सोलो का ही उल्लेख संजीवनी के रूप में कर रहे थे। इनपुट-आईएएनएस