खास कस्टमाइज़्ड बैग ने की राह आसान
ट्रेवर मेलानी को अपनी पीठ पर लादकर पहाड़ों औरी दुर्गम चोटियों पर चढ़ते हैं। इसके लिए दोनों ने एक खास कस्टमाइज्ड बैगनुमा कैरियर बैगपैक बनवाया है। मेलानी इसमें आसानी से फिट होकर बैठ जाती हैं और ट्रेवर इसे अपनी पीठ पर लेकर चलते हैं। वहीं मेलानी की खासयित है कि वे रास्ते बताने और मैप पढऩे में माहिर हैं। उनकी गाइडिंग क्षमता के कारण ट्रेवर को चढ़ाई करने में परेशानी नहीं आती। दोनों एक-दूसरे के साथ को खूब एंजॉय करते हैं और इस तरह बिना किसी और की मदद के अपने शौक को पूरा कर रहे हैं। वहीं दोनों को इस बात की भी तसल्ली है कि अब वे किसी पर बोझ नहीं है। एक-दूसरे की कमी को उन्होंने अपनी ताकत बना लिया है।
ट्रेवर मेलानी को अपनी पीठ पर लादकर पहाड़ों औरी दुर्गम चोटियों पर चढ़ते हैं। इसके लिए दोनों ने एक खास कस्टमाइज्ड बैगनुमा कैरियर बैगपैक बनवाया है। मेलानी इसमें आसानी से फिट होकर बैठ जाती हैं और ट्रेवर इसे अपनी पीठ पर लेकर चलते हैं। वहीं मेलानी की खासयित है कि वे रास्ते बताने और मैप पढऩे में माहिर हैं। उनकी गाइडिंग क्षमता के कारण ट्रेवर को चढ़ाई करने में परेशानी नहीं आती। दोनों एक-दूसरे के साथ को खूब एंजॉय करते हैं और इस तरह बिना किसी और की मदद के अपने शौक को पूरा कर रहे हैं। वहीं दोनों को इस बात की भी तसल्ली है कि अब वे किसी पर बोझ नहीं है। एक-दूसरे की कमी को उन्होंने अपनी ताकत बना लिया है।
सोशल मीडिया पर हुए वायरल
मेलानी का कहना है कि हमारे बीच की सबसे महत्त्वपूर्ण कड़ी है कम्यूनिकेशन। मैं उन्हें रास्ते में आने वाले खतरों के बारे में तो बताती ही हूं लेकिन यह भी जानती हूं कि ट्रेवर वाकई में क्या चाहते हैं। हम दोनों ही अपनी कहानी से लोगों को प्रेरित करना चाहते हैं। इसलिए हम हाइकिंग की वीडियोज और फोटो अपने अनुभव के साथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर डालते रहते हैं। हमारा प्रयास है कि लोग अपने कम्फर्टजोन से बाहर आएं और वही करें जो असल में वे करना चाहते हैं। हालांकि ट्रेवर को सह पसंद नहीं कि लोग उन्हें प्रेरक मानें। उनका कहना है कि क्या लोग सामान्य पर्वतारोहियों को भी प्रेरक कहते हैं? हमें विशेष व्यवहार की जरुरत नहीं है। बस लोग मिारी उपलब्धियों का सम्मान करें हमने इसे कैसे किया इसका नहीं।
मेलानी का कहना है कि हमारे बीच की सबसे महत्त्वपूर्ण कड़ी है कम्यूनिकेशन। मैं उन्हें रास्ते में आने वाले खतरों के बारे में तो बताती ही हूं लेकिन यह भी जानती हूं कि ट्रेवर वाकई में क्या चाहते हैं। हम दोनों ही अपनी कहानी से लोगों को प्रेरित करना चाहते हैं। इसलिए हम हाइकिंग की वीडियोज और फोटो अपने अनुभव के साथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर डालते रहते हैं। हमारा प्रयास है कि लोग अपने कम्फर्टजोन से बाहर आएं और वही करें जो असल में वे करना चाहते हैं। हालांकि ट्रेवर को सह पसंद नहीं कि लोग उन्हें प्रेरक मानें। उनका कहना है कि क्या लोग सामान्य पर्वतारोहियों को भी प्रेरक कहते हैं? हमें विशेष व्यवहार की जरुरत नहीं है। बस लोग मिारी उपलब्धियों का सम्मान करें हमने इसे कैसे किया इसका नहीं।
बेटी के लिए एक पैर से नापा दुनिया का अंतिम छोर
अर्जेंटीना की राजधानी वेनेजुएला निवासी 57 वर्षीय येस्ली अरेंडा ने अपने कृत्रिम पैर की मदद से ही पूरे दक्षिणी अमरीका को पार कर दिखाया। येस्ली ने कहा कि वे अपनी दो बेटियों और साथियों को यह बताना चाहते थे कि जीवन में भले ही कितनी ही कठिनाइयां क्यों न आएं लेकिन अपने सपनों का पीछा करना कभी नहीं छोडऩा चाहिए। उन्होंने बीते साल एक बैग और 30 डॉलर (21 हजार रुपए) के साथ इस सफर की शुरुआत की थी। उन्होंने एक साल के इस समय में भीषण गर्मी और सर्द बर्फीले मौसम से लेकर राह की अन्य चुनौतियों का भी सामना किया। वेनेजुएला से दुनिया के अंतिम छोर उशुआइया तक उन्होंने 1500 किमी की दूरी पैदल तय की है।
अर्जेंटीना की राजधानी वेनेजुएला निवासी 57 वर्षीय येस्ली अरेंडा ने अपने कृत्रिम पैर की मदद से ही पूरे दक्षिणी अमरीका को पार कर दिखाया। येस्ली ने कहा कि वे अपनी दो बेटियों और साथियों को यह बताना चाहते थे कि जीवन में भले ही कितनी ही कठिनाइयां क्यों न आएं लेकिन अपने सपनों का पीछा करना कभी नहीं छोडऩा चाहिए। उन्होंने बीते साल एक बैग और 30 डॉलर (21 हजार रुपए) के साथ इस सफर की शुरुआत की थी। उन्होंने एक साल के इस समय में भीषण गर्मी और सर्द बर्फीले मौसम से लेकर राह की अन्य चुनौतियों का भी सामना किया। वेनेजुएला से दुनिया के अंतिम छोर उशुआइया तक उन्होंने 1500 किमी की दूरी पैदल तय की है।
2013 में खोए पिता-बेटी ने पैर
कभी बस ड्राइवर रहे येस्ली छह साल पहले एक सड़क दुर्घटना में बुरी तरह घायल हो गए थे। इस दुर्घटना में उनकी 23 साल की बेटी पाओला को भी अपना एक पांव गंवाना पड़ा था। वे 15 दिन तक कोमा में रहे। अस्पताल से घर आने के बाद वे जैसे-तैसे सहारा लेकर चलने लगे। उन्हें तो एक कृत्रिम अंग मिल गया लेकिन उनकी बेटी के लिए इसकी व्यवस्था नहीं हो पाई और वह व्हीलचेयर पर ही जिंदगी जीने को मजबूर हो गई। पाओला की इस निराशा को देखकर येस्ली को दुनिया के अंतिम छोर तक पैदल यात्रा करने का विचार आया ताकि वे बेटी को हिम्मत दे सकें।
कभी बस ड्राइवर रहे येस्ली छह साल पहले एक सड़क दुर्घटना में बुरी तरह घायल हो गए थे। इस दुर्घटना में उनकी 23 साल की बेटी पाओला को भी अपना एक पांव गंवाना पड़ा था। वे 15 दिन तक कोमा में रहे। अस्पताल से घर आने के बाद वे जैसे-तैसे सहारा लेकर चलने लगे। उन्हें तो एक कृत्रिम अंग मिल गया लेकिन उनकी बेटी के लिए इसकी व्यवस्था नहीं हो पाई और वह व्हीलचेयर पर ही जिंदगी जीने को मजबूर हो गई। पाओला की इस निराशा को देखकर येस्ली को दुनिया के अंतिम छोर तक पैदल यात्रा करने का विचार आया ताकि वे बेटी को हिम्मत दे सकें।