थप्पड़ से डर नहीं लगता साहब…
इस गलती को लेकर सोशल मीडिया पर समारोह के आयोजकों का खूब मजाक उड़ा। बांग्ला फिल्मकार श्रीजीत मुखर्जी ने ट्वीट किया- ‘थप्पड़ से डर नहीं लगता साहब, फेलू मित्र से लगता है।’ इस बार सत्यजीत राय को श्रद्धांजलि के तौर पर समारोह में उनकी ‘सोनार किला’ के अलावा ‘पाथेर पंचाली’ (1955), ‘चारूलता’ (1964), ‘शतरंज के खिलाड़ी’ (1977) और ‘घरे बाइरे’ (1984) दिखाई जा रही हैं।
सत्यजीत राय के साथ दूसरी बार गलती
अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह जैसे बड़े आयोजन में, जहां सैकड़ों फिल्में शामिल हों, इस तरह की गलती एकाध बार हो, तो बात समझ आती है। लेकिन बार-बार गलती होना आयोजकों की लापरवाही दर्शाता है। गंभीर बात यह है कि गलती सत्यजीत राय जैसे फिल्मकार के साथ होती है, जिनकी फिल्में दुनियाभर में पहचानी जाती हैं। समारोह के आयोजक सत्यजीत राय तक को नहीं पहचानते। दो साल पहले गोवा के अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में राय की ‘गणशत्रु’ दिखाई गई थी। इसके ब्योरे में राय का परिचय देते हुए उनके बदले ‘परिचय’ बनाने वाले गुलजार की फोटो लगा दी गई। तब इस फिल्म के अभिनेता सौमित्र चटर्जी ने अफसोस जताया था कि समारोह के आयोजक न सत्यजीत राय को पहचानते हैं, न गुलजार को।
दिवंगत राजकुमार की जगह किसी और की तस्वीर
जिक्र किसी का, तस्वीर किसी और की वाली गड़बड़ी 2006 के गोवा समारोह में भी हुई थी। उस साल अधिकृत ब्रोशर में दिवंगत कन्नड़ फिल्मकार राजकुमार के बदले कन्नड़ के ही जीवित फिल्मकार गिरीश कसरवल्ली की तस्वीर लगा दी गई। समारोह के संचालन का जिम्मा संभाल रही एंटरटेनमेंट सोसाइटी ऑफ गोवा को इस गलती के लिए माफी मांगनी पड़ी थी। गोवा समारोह को कान समारोह की टक्कर के आयोजन में बदलने को कोशिशों में जुटे फिल्म समारोह निदेशालय को ऐसी गलतियों के सिलसिले पर पूर्ण विराम लगाना चाहिए। बार-बार ‘हमसे भूल हो गई, हमका माफी दई दो’ की मुद्रा अपनाने से समारोह की प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल असर पड़ता है।