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आजमगढ़

तो क्या पिता के अपमान को भूलकर इस बाहुबली को गले लगाएंगे अखिलेश यादव

क्या मुलायम सिंह यादव भूलकर इस बाहुबली को गले लगा पाएंगे या एक बार फिर अखिलेश यादव अपने पिता को नजरअंदाज कर…

आजमगढ़Jun 18, 2018 / 01:10 pm

ज्योति मिनी

akhilesh yadav forget his father mulayam insult for bahubali ramakant

तो क्या पिता के अपमान को भूलकर इस बाहुबली को गले लगाएंगे अखिलेश यादव

आजमगढ़. वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव, मोदी की लहर पूर्वाचल में कम करने के लिए मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ संसदीय सीट से मैदान में उतरे थे। भाजपा ने मुलायम को मात देने के लिए उन्हीं के शिष्य बाहुबली को सामने कर दिया था। उस समय दोनों में न केवल कड़ी प्रतिद्वंदिता देखने को मिली थी बल्कि रमाकांत ने मुलायम सिंह का नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ा था। यहीं नहीं रमाकांत यादव ने मुलायम सिंह यादव के खिलाफ ऐसे नारे लगवाये जैसा आज तक उनकी सबसे बड़ी प्रतिद्वंदी रही मायावती अथवा किसी अन्य दल के नेता ने नहीं लगवाया। यहीं नहीं रमाकांत ने मुलायम को अपना राजनीतिक गुरू भी मानने से इनकार करते हुए दावा कर दिया था सपा में उनकी लाश भी वापस नहीं जाएगी।
जबकि मुलायम सिंह ने कभी रमाकांत यादव को हत्या के गंभीर आरोप से बचाया था। अब वहीं रमाकांत यादव एक बार फिर सपा में जाने की कोशिश कर रहे हैं और इसी दल से मुलायम सिंह की ही सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं। ऐसे में यह चर्चा आम है कि, क्या मुलायम सिंह यादव लोकसभा चुनाव में रमाकांत द्वारा किये गए कृत्य को भूलकर गले लगा पाएंगे या एक बार फिर अखिलेश यादव अपने पिता को नजरअंदाज कर रमाकांत को अपनाएंगे।
बता दें कि, रमाकांत यादव कभी मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी हुआ करते थे। सपा के गठन के बाद से ही रमाकांत यादव मुलायम सिंह के साथ रहे। सपा बसपा गठबंधन सरकार के दौरान जब मायावती ने समर्थन वापस लिया तो उसके बाद हुए गेस्ट हाउस कांड में रमाकांत यादव का नाम आया। यही नहीं जब विधायक रहते हुए रमाकांत यादव पर हत्या का आरोप लगा तो मुलायम सिंह थे, जिन्होंने रमाकांत को जेल जाने से बचाया। इसके बाद भी रमाकांत यादव वर्ष 2004 में मुलायम का साथ छोड़ दिये और बसपा में चले गए। मायावती ने टिकट दिया और रमाकांत सांसद चुन लिए गए लेकिन उन्होंने मायावती का साथ भी नहीं निभाया और 2008 में बीजेपी में शमिल हो गए।

2009 के लोकसभा चुनाव में रमाकांत आजमगढ़ से ही बीजेपी के टिकट पर सांसद चुने गए। इसके बाद वर्ष 2014 के चुनाव में बीजेपी ने उन्हें फिर मैदान में उतारा। वहीं सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव पार्टी की गुटबंदी खत्म करने और पूर्वांचल में मोदी की लहर को कम करने के लिए आजमगढ़ से चुनाव लड़े। उस समय रमाकांत ने मुलायम सिंह को घेरने का कोई मौका नहीं गवाया। रमाकांत ने उसी दिन नामाकंन का फैसला लिया जिस दिन मुलायम को नामाकंन करना था। प्रतिद्वंदिता का अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि, दोनों का जुलूस भी एक ही समय पर निकला यह अलग बात था कि रूट अलग था। इसके बाद भी रमाकांत यादव और उनके समर्थक कलेक्ट्रेट के करीब मुलायम के सामने आ गये और नारा लगाया उपर छतरी नीचे छाया भाग मुलायम मोदी आया। यहीं नहीं इस दौरान मुलायम सिंह वापस जाओ लाठी लेकर भैस चाराओं आदि नारे भी लगाए गए।

प्रबुद्ध लोगों ने रमाकांत और उनके समर्थकों के इस कृत्य पर नाराजगी भी जताई। उस समय लोगों का कहना था कि, मुलायम यूपी के सीएम रहे हैं और रमाकांत यादव के वे राजनीतिक गुरू भी थे। ऐसे में उनके साथ इस तरह का व्यवहार नहीं होना चाहिए था लेकिन रमाकांत ने उन्हें अपना गुरू मानने से इनकार कर दिया था। जिले की जनता ने रमाकांत के बजाय मुलायम को अपना नेता माना और रमाकांत यादव चुनाव हार गए लेकिन देश में बीजेपी सरकार बनने के बाद फिर रमाकांत की महत्वाकांक्षा आड़े आ गयी। उन्हें सरकार में जगह नहीं मिली तो उन्होंने गृहमंत्री राजनाथ सिंह को ही निशाने पर ले लिया। इसके बाद वर्ष 2017 में प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने के बाद जब उनके पुत्र को मंत्री की कुर्सी नहीं मिली और सरकार ने रमाकांत के अवैध खनन के करोबार पर रोक लगाया तो वे सीएमी योगी पर भी हमलावर हो गए। सवर्णो को गाली देकर रमाकांत ने अपनी मुश्किल और बढ़ा ली। अब रमाकांत यादव को इस बात का एहसास है कि, वर्ष 2019 के चुनाव में सवर्ण उनके साथ नहीं जाएगा तो वे सपा में अपनी गोटी सेट करने में लगे हैं।
सपा में वापसी के लिए रमाकांत यादव अबू आसिम, प्रोफेसर रामगोपाल से मिल चुके हैं। उनकी एक मुलाकात अखिलेश यादव से भी हो चुकी है। रमाकांत के करीबियों का मानना है कि, वे जून माह के अंत तक सपा में शामिल हो सकते हैं। ऐसे में यह चर्चा जोर शोर से चल रही है कि, क्या जिस तरह मायावती ने गेस्ट हाउस कांड को भुलाकर रमाकांत यादव को टिकट दिया था उसी तरह मुलायम सिंह भी रमाकांत की ओछे कृत्य को भूलकर उन्हें गले लगा लेंगे। अगर मुलायम ने रमाकांत यादव को माफ नहीं किया तो क्या होगा। क्या अखिलेश यादव पिता की असहमति के बाद भी रमाकांत को पार्टी में शामिल कर लेंगे। इस सारे सवाल के जवाब सपा के साथ ही विपक्ष और मतदाता भी ढूंढ़ रहे हैं।
input रणविजय सिंह

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