2009 के लोकसभा चुनाव में रमाकांत आजमगढ़ से ही बीजेपी के टिकट पर सांसद चुने गए। इसके बाद वर्ष 2014 के चुनाव में बीजेपी ने उन्हें फिर मैदान में उतारा। वहीं सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव पार्टी की गुटबंदी खत्म करने और पूर्वांचल में मोदी की लहर को कम करने के लिए आजमगढ़ से चुनाव लड़े। उस समय रमाकांत ने मुलायम सिंह को घेरने का कोई मौका नहीं गवाया। रमाकांत ने उसी दिन नामाकंन का फैसला लिया जिस दिन मुलायम को नामाकंन करना था। प्रतिद्वंदिता का अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि, दोनों का जुलूस भी एक ही समय पर निकला यह अलग बात था कि रूट अलग था। इसके बाद भी रमाकांत यादव और उनके समर्थक कलेक्ट्रेट के करीब मुलायम के सामने आ गये और नारा लगाया उपर छतरी नीचे छाया भाग मुलायम मोदी आया। यहीं नहीं इस दौरान मुलायम सिंह वापस जाओ लाठी लेकर भैस चाराओं आदि नारे भी लगाए गए।
प्रबुद्ध लोगों ने रमाकांत और उनके समर्थकों के इस कृत्य पर नाराजगी भी जताई। उस समय लोगों का कहना था कि, मुलायम यूपी के सीएम रहे हैं और रमाकांत यादव के वे राजनीतिक गुरू भी थे। ऐसे में उनके साथ इस तरह का व्यवहार नहीं होना चाहिए था लेकिन रमाकांत ने उन्हें अपना गुरू मानने से इनकार कर दिया था। जिले की जनता ने रमाकांत के बजाय मुलायम को अपना नेता माना और रमाकांत यादव चुनाव हार गए लेकिन देश में बीजेपी सरकार बनने के बाद फिर रमाकांत की महत्वाकांक्षा आड़े आ गयी। उन्हें सरकार में जगह नहीं मिली तो उन्होंने गृहमंत्री राजनाथ सिंह को ही निशाने पर ले लिया। इसके बाद वर्ष 2017 में प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने के बाद जब उनके पुत्र को मंत्री की कुर्सी नहीं मिली और सरकार ने रमाकांत के अवैध खनन के करोबार पर रोक लगाया तो वे सीएमी योगी पर भी हमलावर हो गए। सवर्णो को गाली देकर रमाकांत ने अपनी मुश्किल और बढ़ा ली। अब रमाकांत यादव को इस बात का एहसास है कि, वर्ष 2019 के चुनाव में सवर्ण उनके साथ नहीं जाएगा तो वे सपा में अपनी गोटी सेट करने में लगे हैं।