
The first spark of the Gadar of 1857 arose from the Naugaon Cantonment
नीरज सोनी
छतरपुर। देश की आजादी क लिए 1857 में हुए पहले स्वतंत्रता संग्राम के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन यह बात बहुत कम लोगों को पता है कि इस संग्राम की पहली चिंगारी जिले के नौगांव से उठी थी। अंग्रेजों की सैनिक छावनी रहे नौगांव में अंग्रेजी हुकूमत के चिन्ह आज भी मौजूद है। 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम की असली सुगबुगाहट बुंदेलखंड की नौगांव छावनी से हुई थी। मरेठ में विद्रोह होने से पहले ही छतरपुर जिले के नौगांव छावनी के सिपाहियों में विद्रोह की आग भड़क उठी थी। 1857 की क्रांति के समय नौगांव छावनी में १२वीं भारतीय पलटन के 400 बंदूकधारी, 219 घुड़सवार,40 तोपची व पैदल सिपाही थे। इस फौज का कमांडर मेजर किटके तथा स्टाफ आफीसर केप्टन तथा स्टाफ आफीसर केप्टन पीजी स्पाट था।
२३ अप्रैल को ही छावनी में कुछ गोलियां दागी गई थी। इनके कारतूस में गाय और ***** की चर्बी होने के कारण सेना में विद्रोह हो गया था। २४ मई को अंग्रेजों ने सुरक्षा के लिए चार तोपें तैनात कर दी थी। चौकसी के लिए सिपाहियों को अधिक फासले पर लगा दिया, ताकि वे आपस में न मिल सके। लेकिन उमनें उत्तेजना बढ़ रही थी। 30 मई को वेतन हवलदार सरदार खां ने चार सिपाहियों पर संदेह जताया। इन्हें बर्खास्त कर छतरपुर भेजा गया। मेजर किरके द्वारा सभी 12 तोपें पलटन के क्वार्टर के सामने लगाने से सिपाहियों में विद्रो तेज हो गया। झांसी में क्रांति होने पर नौगांव से दो सैनिक पाटियां क्रांति की जानकारी दिए बगैर भेजी गई। लेकिन इनको क्रांति की खबर लग गई। पार्टी ने बीच में ही वापस लौटकर अंग्रेजों का कत्ल करने का निश्चय कर लिया। लेकिन इसकी खबर बिलहरी के वंशगोपाल माफीदार ने अंग्रेजों को दे दी। १० जून की शाम सिपाहियों ने लाइंस से गोलियां दागी। खबर लगते ही टाउनशैड, ईवार्ट तथा स्पाट घोड़ों से भागे, लेकिन तब तक सिपाहियों ने तोपों पर कब्जा कर लिया था। विद्रोहियों ने तोपें दागकर अंग्रेजों के भागने के सभी रास्ते बंद कर दिए स्पाट ने शस्त्रागार पहुंचकर निगरानी कर रहे सिपाहियों को बागियों पर धावा बोलने कहा। लेकिन उन्होंने न सुनी। बागियों ने शस्त्रागार उड़ाने के बाद छावनी के बंगलों पुस्तकालय और रिकार्ड में अगा लगा दी। खजाने से १.२१ लख रुपए की संपति लूट ली गई। सेकेंड लेफिटनेंट टाउनशेड व सार्जेट रैटे, कुंघ्य नायक बिगुलची रोडरिक ८० सिपाहियों एवं तीन भारतीय अधिकारियों सहित यहां से बच निकले। १० जून की रात यह लोग छतरपुर की महारानी से शरण मांगने आए। उन्हें एक सराय में ठिकाना मिल गया। लेकिन रानी ने उनसे हमदर्दी नहीं दिखाई। दो दिन बाद वे यहां से भाग गए। विद्रोहियों ने १९ जून को टाउनशेड की महोबा से कलिंजर के रास्ते जाते समय हत्या कर दी।
Updated on:
17 Aug 2018 06:06 pm
Published on:
15 Aug 2018 03:27 pm
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