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चित्तौड़गढ़

नियमों से परे 12 लाख के रिफण्ड की जांच में नगर परिषद दोषी

चित्तौडग़ढ़ नगर परिषद के उप सभापति भरत जागेटिया और उनके भाई को वर्ष २०१२ में भूमि नियमन पट्टा जारी होने के पांच साल बाद बारह लाख रूपए की राशि लौटाने के मामले में जांच के बाद क्षेत्रीय उप निदेशक ने नगर परिषद चित्तौडग़ढ़ को दोषी मानते हुए निदेशक को रिपोर्ट भेज दी है।

चित्तौड़गढ़Mar 25, 2019 / 09:59 pm

Nilesh Kumar Kathed

chittorgarh

नियमों से परे 12 लाख के रिफण्ड की जांच में नगर परिषद दोषी

उप सभापति भरत जागेटिया से जुड़ा हुआ है मामला
उप निदेशक ने मांगे अधिकारियों, कर्मचारियों और जनप्रतिनिधियों के नाम
निदेशक को भेजी जांच रिपोर्ट
चित्तौडग़ढ़. चित्तौडग़ढ़ नगर परिषद के उप सभापति भरत जागेटिया और उनके भाई को वर्ष २०१२ में भूमि नियमन पट्टा जारी होने के पांच साल बाद बारह लाख रूपए की राशि लौटाने के मामले में जांच के बाद क्षेत्रीय उप निदेशक ने नगर परिषद चित्तौडग़ढ़ को दोषी मानते हुए निदेशक को रिपोर्ट भेज दी है। क्षेत्रीय उप निदेशक ने नगर परिषद आयुक्त से कहा है कि वे पत्रावली के निस्तारण के समय पदस्थापित अधिकारी, कर्मचारी और जनप्रतिनिधियों के नाम भिजवाएं।
परिषद में नेता प्रतिपक्ष कांग्रेस के संदीप शर्मा ने स्वायत्त शासन विभाग के निदेशक एवं संयुक्त सचिव पवन अरोड़ा को शिकायत की थी कि भरत कुमार जागेटिया ने उप सभापति पद का कार्य ग्रहण करने के बाद सभापति सुशील कुमार शर्मा के साथ षडय़ंत्र पूर्वक मिलीभगत कर पद का दुरूपयोग किया। उप सभापति ने १३ फरवरी २०१७ को अपने भाई अशोक कुमार जागेटिया से परिषद के समक्ष एक आवेदन इस आशय का पेश करवाया कि प्रार्थी को वर्ष २०१२ में जो पट्टा जारी किया गया था, उसमें भूलवश अधिक राशि जमा हो गई थी, उसे लौटाई जाए। उप सभापति जागेटिया ने भी १३ फरवरी २०१७ को ही इसी तरह का आवेदन कर राशि लौटाने की मांग की थी। शिकायत में आरोप लगाया गया कि आपसी मिलीभगत से पांच वर्ष पूर्व जमा की गई राशि में से अशोक कुमार को ६ लाख १९ हजार ७०८ रूपए एवं भरत कुमार जागेटिया को ६ लाख १८ हजार २७३ रूपए की राशि लौटाकर नगर परिषद को कुल १२ लाख ३७ हजार ९८१ रूपए का नुकसान पहुंचाया गया। इसके लिए सभापति व उप सभापति दोनों को राजस्थान नगर पालिका अधिनियम २००९ की धारा ३९ के अन्तर्गत पद का दुरूपयोग के लिए दोषी बताते हुए कार्रवाई की मांग की गई।
शिकायत में लौटाई गई राशि मय ब्याज वसूल करने के साथ ही दोषियों के खिलाफ न्यायिक जांच के साथ जांच पर किसी तरह का असर रोकने के लिए सभापति व उप सभापति को निलंबित करने की मांग की गई।
यह है प्रावधान
परिपत्र क्रमांक २१ सितंबर २०१२ का उल्लेख करते हुए यह राशि वर्ष २०१७ में लौटाई गई। जबकि यह परिपत्र भूतलक्षी प्रभाव से लागू नहीं किया जा सकता। इस परिपत्र में भी स्पष्ट प्रावधान था कि दिनांक एक जनवरी १९९१ से पूर्व सरकारी भूमि पर अतिक्रमण कर बनाए गए किसी निर्मित आवास का नियमन कर दिया गया है तो यह राशि रिफण्ड नहीं की जाएगी।
फिर क्या हुआ
स्वायत्त शासन विभाग के निदेशक एवं संयुक्त सचिव पवन अरोड़ा ने मामले की गंभीरता को देखते हुए विभाग के क्षेत्रीय उप निदेशक उदयपुर को जांच कर रिपोर्ट भेजने के आदेश दिए। क्षेत्रीय उप निदेशक प्रभा गौतम ने सहायक लेखाधिकारी प्रकाशचन्द्र कटारिया से मामले की जांच करवाई तो पाया गया कि प्रशासन शहरों के संग अभियान २०१२ दिनांक १ नवंबर २०१२ से प्रारंभ हुआ था। जबकि यह दोनों प्रकरण प्रशासन शहरों के संग अभियान से पहले ही निर्णित होकर आदेश जारी हो चुके थे तथा २७ अक्टूबर २०१२ को शाश्वत लीज भी जारी की जा चुकी थी। जांच रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि इन दोनों नियमन प्रकरणों को प्रशासन शहरों के संग अभियान में शामिल नहीं किया जा सकता, इसलिए पत्रावली में रिफण्ड की गई राशि नियम संगत नहीं है।
ये हैं दोनों प्रकरण
१. भरत कुमार पुत्र इन्द्रमल जागेटिया (वर्तमान में उप सभापति नगर परिषद चित्तौडग़ढ़) ने राजकीय भूमि नियमन के लिए २५ जनवरी १९९७ व पुन: आवेदन १० अप्रेल २०१२ को नगर परिषद में पेश किया था। नगर परिषद ने ४ अगस्त २०१२ को ८ लाख ३३ हजार २९८ रूपए जमा करते हुए भूमि का नियमन कर पट्टा जारी कर दिया। जिसका पंजीयन भी हो गया। जागेटिया ने नवम्बर २०१४ में नगर परिषद चित्तौडग़ढ़ के उप सभापति पद पर निर्वाचित होकर उप सभापति पद का कार्य ग्रहण कर लिया।
२. उप सभापति भरत जागेटिया के भाई अशोक कुमार पुत्र इन्द्रमल जागेटिया ने भी १० अप्रेल २०१२ को राजकीय भूमि नियमन के लिए नगर परिषद में आवेदन पेश किया। नगर परिषद ने ८ लाख ३५ हजार ६३० रूपए जमा करते हुए अशोक कुमार पुत्र इन्द्रमल जागेटिया के नाम भूमि नियमन कर पट्टा जारी कर दिया, जिसका भी पंजीयन हो चुका है।
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